Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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"चक्काय- घरिणि' सरि एह जेम्व जिह राय - कीरि पंजरि निरुद्ध [364] उक्कंठ-विसंठुलै भई छाउ गुरुर्णेण तु सु " सहाव सच्छे
आरूढु तुरंगि समुद्ददत्तु पमुइय- मण सो अवरन्ह - कालि आवद्ध-वेणि कर- गलिय-वलय
मल-मइल-वेस इय-गुण-विसि
पउमसिरि चरिउ
पेक्खेवि कुमरु तहि वालहि दुविसह लोय - संतावर्णे
[ पं० ६६-८४
विरहाउर मज्झ वि दइय तेम्व ॥ ६१ अच्छइ महु मग्गु नियन्तं मुद्ध” ॥ ६२ विरहानल - सोसिय नियवि जाउ ॥ ६३ निय कंत लपविणुं आउ वच्छे” ॥ ६४ हत्थिणउरि सहुँ सत्थेण पत्तु ॥ ६५ पइसरइ संख - मंदिर विसालि ॥ ६६ सिय- दसण - सेणि " ॥ ६७ लवंत - अलय " ॥ ६८ लीहावसेस ॥ ६९ परमसिरि दिट्ठ || ७०
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॥ घत्ता ॥
खणद्धिं" सोगु हि । क - पुन्नह दालिद्दु जिह ॥ ७१ [ ६ ]
भुंजिउ विलित हरियंदणेण ॥ ७२ परिपुच्छिय कुसलाइय-पउत्ति ॥ ७३ वारुणि-पसंग - जणियाणुराउं ॥ ७४ नं" अब्भमुकुर" वि अत्थवेइ ॥ ७५ विणिवेसिङ (?)" कोमल - तूलि सयं७६ सेज्जहि ठिउ अच्छाई तहिँ कुमारु ॥ ७७ धणसिरिऍ कम्मु वहुँ-दुक्ख- रासि ॥ ७८ केलिप्पिड आइउ तहिँ पिसाउ ।। ७९ चिंत[वि] "विहडावउँ विहि मि नेहु" ८० फुडु वयहिँ जिह सो कुमरु सुणइ ॥ ८१ आवेज्जसु अणुदिणु एत्थु गेहि ॥ ८२ आणिउ एत्थु पई अन्नु कोइ " ॥ ८३ जोवइ कुमारु ता झत्ति नड्डु ॥ ८४
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15 न्हाविय सुगंध - न्हाणिय- जलेण [36B] तंबोलै दिन्नु किय उचिय-वित्ति एत्थंतरि मडलिउ गुरु-पयाउ कह वि य अत्थवं न होइ लोइ पउमसिरिइ" सज्जिय वास-भवणुं 20 निम्मल पईउँ निहयंधयारु
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जं वद्धउँ" अन्नहि जम्मि आसि तं उदयगड (?) भोगंतराउ पउमसिरि नियवि आवंत गेहुँ सो अन्न- भित्ति-अंतरिउ भणइ 25 [37a]‘अत्थमिइ सूरि पसरिइ तमोहि [म] सिरि मज्झु संकेउ देइ “को वोलइ एहु अणज्जु धडु”
7 वस्थ.
19 पयाड.
अगय. 12 खणद्धी. 13 दुविसद्द. 18 कसलाई पएउत्ति. 24 अभमुकुर. 25 पउम सिरियं. 30 पइउ. 31 अच्छहिंइ. 32 यधंउं.
1 घरणि. 2 नियन्न. 3 विहुल. 8 यवरन्हकाली. 9 आयधवणिं. 10 सेणी. 11 14 संतावणुं 15 पाय. 16 जण. 17 तंबोलु. 20 पसंगु. 21 °णुराओ. 22 अस्थवणुं. 23 तं. 26 °भवणं. 27 वणवेसिउ. 28 तलि. 29 °सयणुं 33 यदु. 34 दुयह. One mora too few 35 गेहि 36 पिहिविं.
4 मह°. 5 सत्थ. 6 लएविणुं.
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