Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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पं० १२६ - १३६; ४. १-७ ७]
आवेसि नाहतिं धरिय पाण तुहुँ सामिय केण इ अलिउ अज्जुं उ सुक्क विरह संताव-तत्त दुबाइय मंजरि जिह मिलाएँ उप्पाडिय - फणि-मणि जिह भुयंगि वासरह निग्गय सीलवंति चिंतंतु एह गुरुयणह सिड्ड अइभीम-सोय- सायरि निहित्त वज्जिय विस-मंजरि जह भमरेंहि वज्जिय सुयण गोट्ठि जिह पिसुणेंहि
तिह सयल - सोक्ख- परिवज्जिय निष्फल इ[41] तारुन्न- सिरि । जिणुं दिवदिट्ठि मणि झायइ कंति परत्थइ परमसिरि ॥ १३६
[ इइ तईय संधि ]
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लीलारविंद- हत्था सिरिया- देवि" अवहरउ
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चउत्थ संधि
३१
१२६
कइया विनखंडिय तुम्ह आण ॥ संभालिउ जिह मइँ किउ अकज्जु ॥ २७ कवी [40B] र-माल जिह न वि विरत ॥ २८ करि-वरतं व उक्खय- चिसाण ।। २९ विच्छाय दीण भय-वेविरंगि” ॥ १३० वत्थंचलेण नयणइँ लुहंति ॥ ३१ जोयाविउ कुमरु न कहिँ विदिट्टु ॥ ३२ दोहग्ग- सल्ल - सल्लिय-विचित्त ॥ ३३ वज्जिय सूर - दिट्ठि जिह तिमरेंहि ॥ ३४ वज्जिय सीह दिट्ठि जिह हरिणहि ॥ ३५
॥ घत्ता ॥
[ चउत्थ संधि ]
गुरुय कुमारि कहिय वत्त कोसलउरि निय-कुल-गयण- चंदु भुय-डंड-समज्जियं- विउल-कोसु तसु पुष्पवई नामेण कंत जसवई जसोय सग्गहुँ चवेवि ̈
17
॥ घत्ता ॥
13
अरुणुग्गमे सूर - छाहिहिं (?) चंदु जेम्व विच्छाय-तणु । रोवंत कंत मेलेविणु
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सिंचंती (?) वारणेहि" अणवरयं । तुम्हं" दालिह- दुक्खाई ॥ १
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गउ निय-नयरह वुन्न मणुं ॥ २
[१]
" सा दुट्ठ-सील हुय अम्ह कंत" || ३ वाणियउ आसि नामेण नंदु ॥ ४ गंभीर पियंवर्ड सुद्ध-लेसु ॥ ५ खामोरि गुरु-थण-हार-वंत ॥ ६ धूयत्तणेण तहिं जाय दो वि[41B] ॥ ७
1 अजु. 2 हंउं. 3 मलाण. 4 वरतणुं 5 सीलंवंति 6 हरणेहि 7 उव. 9 सिंचति. 10 वारुणेहि 11° देवी 12 तुम्ह. 13 भरणुगमे सुहत्या हे हि.
15 पुनमणं. 16 गुरुयदाह. 17 कुमारी. 18 समुजिय. 19 पियंवड. 21 केणउ. 22 रामोयरि. 23 कंत. 24 जसम्बद्द 25 सगहि. 26 वववि.
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8 जिणुं .
14 सेम्बत.
20 पुफव्वड.
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