Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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पं० २९-५१]
चउत्थ संधि कंत-विमुक्क नारि अकलंक इ जणु जणु दुट्ठ-सील आसंकइ ॥ २९ कंत-विमुक्तक नारि निरु झिज्जइ घरि वंधर्वेहि वि नाहि गणिजइ ॥ ३० कंत-विमुक्क नारि जं जोयइ कुल-कलंकु तसु. गरुयउँ ढोयइ ॥ ३१ कंत-विमुक्क नारि सवियारिहिँ जोइज्जइ पर-दार-वियारिहि ॥ ३२ कंत-विमुक्क नारि संताविं खणु वि न मुच्चइ जिह रवि ताविं॥३३ । कंत-विमुक वंधु लज्जावइ करइ कज्जु जं अप्पु ण भावइ ॥ ३४ कंत-विमुक्क नारि [अ]तरंडउँ[43A] वहुविह-दुक्खह होइ करंडउँ ॥ ३५
॥ घत्ता ॥ महु कंत-विमुक्कहि विरहिं सुकहि अन्न-पुरिस-वज्जिय-मणहि । लावन्न-समुज्जलु जोवणुं निप्फलु कुसुम जेम्व वणि मालइहि ॥३६ ॥
[४] एत्थंतरि आगय विमलसील नामेण गणणि जिण-धम्म-कुसल ॥३७ तवचरण-निरय-साहुणि-समेय सुयदेवय व विज्जोववेय ॥ ३८ अवगाहिय-जिणसासण-समुद्द पडिवोहिय-वहु-भवियारविंद ॥ ३९ सोम्मत्तण-निज्जिय-चंदकंति उवसम-सिरि नावइ मुत्तिमंति ॥ ४० ॥ विंझाडई व गय-मय-वियार पाउस-सिरि व संतावहार ॥ ४१ वाडव-सिहि व कय438]-जलहि-सोस दिणयर-पह व निदलिय-दोस ॥४२ हारावलि ब निम्मल-सुचित्त जिण-धम्म-नाण-भूसिय पवित्त ॥ ४३ कुंदेंदु-धवलु रयहरणु हत्थि जुग-मेत्त-निहिय-लोयण-विसत्थि ॥ ४४ सम्मत्त-नाण-दंसण-समग्ग दूरुज्झिर्य-विसय-कुधम्म-संग ॥ ४५ ३० तं पेक्खिवि हरिसिय संख-धूय कोइल वसंति जह दिट्ठ-चूय ॥ ४६ । अब्भुट्टियं गुरु-संताव-समणि आसणु विदिन्नु उवविट्ठ गणणि ॥ ४७ वंदिवि आणंद-गलंत-दाहुँ गणणीऍ दिन्नु तहि धम्म-लाहु[444]॥४८
॥ घत्ता ॥ वंदेवि गणणि सह-भाविं . कर-कमलंजलि करिवि सिरि । पप्फुल्ल-नयण-मुह-पंकय अग्गई संठिय पउमसिरि ॥ ४९
[५] विणओणय पउमसिरि महासइ दुवल गणणि नियवि आसासंई ॥५० "धम्मसीलें तुहु निरु विच्छाई कंत-विमुक्क नाई चक्काई ॥ ५१
1 जणुं जणुं. 2 खणो. 3 वंध. 4 सरंडउं. 5 विरहि. G सुन. 7 जोयण. 8 वणिं. 9 मालयइ. 10 °सासणिं. 11 परिपोहिय. 12 सोमत्तणि. 13 विज्झाडिय ववगय. 14 पाउय. 15 विसत्थ. [6 दुरुझिय. 17 अहुट्ठिय. 18 आयणु. 19 डवविह. 20 °याहु. 21 गणणि. 2 °लंजणि. 23 अंगइ. 1 गणणिं. 25 आसासइं. 26 नारि.
पउम० ५
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