Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 97
________________ पउमसिरि चरित [पं० १९९-२१८ ॥ पत्ता ॥ हल्लप्फलु दो.28Aहिँ वि परियणु वालहि मणु आणंदियउँ । ] विवाह-दिवसु संपावियउँ ॥ १९९ [१८] । सिरि-मंडविई दुविह-वन्नएहि पूरिउ चउक्कु वर-चुन्नएहि ॥ २०० मोत्ताहल-मंडिउँ पट्ट देवि । उवएसिय तहिं पउमसिरि-देवि ॥ १ पडु-पडह-तूर-मंगल-रवेहि सुइ-सत्थ पढ़तेहि दियवरेहि ॥ २ अइहवहिं करेविणु कोउयाइँ अहिसिंचिवि गाइवि मंगलाइँ ॥ ३ भुय-लयहिँ वर्ल्ड कंकणु पवित्तु दिवोसहि-सिद्धत्थऍहि जुत्तु ॥४ 10 आयंव-कसिण-धवलुज्जलाइँ अंजियइँ नयण-नीलुप्पलाइँ ॥ ५ पिययम-फासेण व सीयलेण धवलिउ सरीरु चंदण-रसेण ॥ ६ रंजिउ विवाहरु जावएण राएण व विहिय-सुहावएण ॥ ७ [28Bहर-हास-हंस-कुंदेंदु-धवलु परिहावि"[य] अहिणव-खोमजुयलु ॥८ मणि नेउर-कुंडल-मउड-हार चामीयर-किंकिणि-मउड-दोर ॥ ९ 15 भमरउल-मउड(?)सिय-कुसुमदाम- संजमिय-केस नं अमर-राम ॥ २१० ॥ धत्ता ।। कुलदेविहि अग्गइ वाल वइसइ सो कुमरु । मंतो इव झायइ नियं(?)-हियइ संताव-हरु ॥ ११ [१९] 20 कय-मंगलृ सो सत्था? जाउ आहरण-कंति-कच्छुरिय-काउ ॥ १२ मणि-मउडालंकिउ उत्तिमंगु दाहिण-करि संठिउ तिक्खु खग्गु ॥१३ सिय कुसुम विलेवर्ण धवलु वत्थु वंदइ गुरु-देवय तिप्पसत्थु ॥ १४ । अच्छइ [सौ] पियंकर-सहिउ जाव सिरिपुज-नाम करि" पत्तु ताम्ब ॥१५ जो हिमगिरि व लंघिय-नहग्गु घंटारव-भरि[29] य-गयणयल-मग्गुं॥१६ 23 मय-जल-कय-कद्दमें नाइ मेहुँ सिय-चमर-संख-संजमिय-सोहु ॥ १७ थिर-थोर-[प]दीहर-सुंडदंडु(?) वर-कुसुम-मालिय-गलिय-गंडु ॥२१८ i Third line missing? The even pădas are unequal. 2 HTÀ. 3 चून्नएहि. 4 मंडीउ. 5 तूरु. 6 भुइयलहिं. 7 यधु. 8 निल्लपलाई. इ. 10 य. 11 °हार. 12 कंदेंदु. 13 बरिहावि. 14 अग्गई. 15 हिय. 16 मेगलु. 17 सस्थादु. 18 कडरिय. 19 विलेविणु धवलु सत्थु. 20 नाम. 21 किर. 22 गणलयमगु. One mora two many. 23 °कद्दम्म. 24 °मेदु. 25 सजमिय. 26 दीहरू दंडसोहु. 27 गलित. One mora too few. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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