Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 98
________________ पं० २१९- २३९] विईय संधि मयगंध-लुद्ध-महुयर-वमाल(?) रुणुरुणिय-तार-रव-गेजमालु ॥ २१९ गंभीर-कंठरवि नासियारि आरोविय-रयण-सुयन्न-सारि ॥ २२० दप्पुब्भर्ड रिउ-रुलयलु(१) कयंतु हरियंदण-धवलियं-धवल-दंतु ॥ २१ ॥ घत्ता॥ सिंदूरिय-कुंभउ मत्त-गइंदु विहावइ। गज्जंतु सविजुलु सरय-महाघणु नावइ ॥ २२ [२०] आरूढु तेत्थु रेहइ कुमार एरावणत्थु नं वजधारु ॥ २३ ससिकिरण-धवल-धरियायवत्त [29B.संवलिय-चलिय-वह-जन्नजत्तु ॥ २४ वजंत-तूर-काहल-ववाँलु पडिसद्द-भरिय-भुयणंतरालु ॥ २५ ॥ वंदणेहि पढ़तेहि महुर-तारु गायंतिहिँ तरुणिहि हियय-हारु॥२६ आसीसउ दितेंहि वंभणेहि नचंतेहि खुजेंहि वावणेहिँ ॥ २७ अमयं व परजण-सुंदरीहिँ पिज्जंतु विउल-नयणंजलीहि ॥ २८ सुहि-वंधव-सहिउ समुद्ददत्तु भवणंगणि संखह तुरिउ पत्तु ॥२९ जं च वजंत-पडु-पडह-सदाउलं. जंच सुपसत्थ-गिजंत-वर-मंगलं ॥२३० 15 जं च नच्चंत-मयमत्त-तरुणीयणं जं च हिंडत-उत्ताल-वर-परियणं ॥३१ जं च सुविभत्त मणि-थंभ-संदोहयं जंच विक्खित्त-अलि-मुहल-कुसुमोहयं३२ [30A]जं च आवद्ध-देवंग-उल्लोवयं जं च माणिक्ककर-जणिय-उज्जोवयं ॥ ३३ जं च झुल्लंत-सिय चमर-मणिमालयं जं च दिप्पंत-हारावली-जालयं ॥ ३४ जं च सुर्वत-वर-वेणु-वीणा-रवं जं च किज्जत-सुहि-वंधुजण-गउरवं ॥३५ 20 जं च मयणाहि-घणसार-गंधुक्कडं जं च भुजंत-बहु-लोय-सय-संकडं ॥ ३६ जं च दिजंत-कप्पूर-तंवोलयं जंच उच्छलिय-उद्दाम-हलवोलयं ॥ ३७ ॥ घत्ता ॥ अवयरिउ गइंदह - कुमरु लोय-लोयण-सुहउ । सहु वंधव-लोऍहिँ संखु वि निस[रि] उ संमुहउ ॥ ३८ 25 [२१] सीलवई-नियंव-विसालियाहिँ अइहवहिँ सहिय-कुल[30B]वालियाहि ॥२३९ ___ 1 यमाणु. 2 रुणुं 3 तारि रवि. 4 मालि. 5 कंठिरवि. 6 दपुब्भडु. 7 धवलिउ. 8 सिंद्धरिय'. 9 मुत्तगइदु. 10 सविजलु. 11 आरुदु. 12 वजवारु. 13 °याइवतु. 14 संचलिय. 15 पवालु. 16 नाचतेहि. 17 पडर'. 18 °यंजलीहि. 19 वसंत्त. 20 सद्दउलं 21 गीजंत. 22 °पडियणं. 23 माणिकरुरजणिंय. 24 फुल्लंत. 25 सुवंति वेणु. 26 सुह. 27 गंधूकडं 28 यदु. 29 दिजंच.. 30 संरकोई. 31 निसड. 32 सीलवई. 33 अधहवहि. 34 सहियकुसयालीलाहिं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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