Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 78
________________ पं० ३७ - ५७ ] मरयमणि-किरण- तिणंकुरालु .(?) जियसत्तु महावलु तहिँ नरिंदु लीलावइ नामिं तासु कंत धणसेणु नावँ पुरिई वरसेडि रावल (?) तसु पिय एकचित्तं पाणप्पिय धणसिरि" - नाउँ धूय 10 मरगयमणि - दामिहि परारामेहि पप्फुल्लिये-कम लेहि हि हंस लें TT मिउ-कसिण- चालवयणारविंद पंकय-द [43] लच्छि कुंडल-विलोल विष्फुरिये - कंति विवाह [रोड ] थण- हार-तुंग वित्थिन - रमणि आयंव- हत्थे जिय-वाल- रंभनव-कणय - गोरि सोहग्ग-खाणि रइ-रूओहामिणि खंडिय - सुर-दप्पहु Jain Education International पढम संधि सिय- चामर-नियर - पलंव- मालु ॥ ३७ पासाउं धरिउ पाउस -विसालु || ३८ ॥ घत्ता ॥ कोमल - केलि - ल[44]याहरिहि । ise वावि-सरोवरेंहिं ॥ ३९ [ ४ ] दरपुरं रिउ - कुंजर - मइंदु ॥ ४० नं वम्मह - गेहिणि रूयवंत ॥ ४१ विहवेण जसु धणओ वि हु हेट्ठि ॥ ४२ धणदत्तु धणावहु विन्हि पुत्त ॥ ४३ उवहसिय- तिलोत्तम - रंभ-रूय ॥ ४४ संग - निलाड ॥ ४५ उवहसिय- चंद ॥ ४६ नं भुषणं- लच्छि ॥ ४७ उज्जल - कवोल ॥ ४८ सिय- दसण - पंति ॥ ४९ वर-कंबुं - कंठ ।। ५० वर्णु - तिवलि-भंग ॥ ५१ मंथरिय - गमणि ॥ ५२ 18 लक्खण-पसत्थ" ॥ ५३ पीणोरु - थंभ" ॥ ५४ मुणि-चित्त- चोरि ॥ ५५ निरु महुर-वाणि ॥ ५६ ॥ घत्ता ॥ सुंदर- कामिण गुरु-माहप्पहु नवजोवर्ण-सज्जिय-रहहु । हत्थि भल्लि " नं वम्महहु ॥ ५७ 23 ३ 1 fare. 2 पासाय पफुलिय° 4 दप्पुधर. 5 नामी 6 नाचंपुरिय. 7 वरे. 8 हि. 9 एक. Two moras are too few in this pāda. 10 धणसिरिं. 11 दलछि. 12 भूयण . 13 उजल. 14 विफुरिय. 15 कंवुट्ठ. The superfluous here is most probably transferred from the previous pāda. 16 तण 17 विथिन. 18 गमणिं. 19 झायंवहथ 20 लखणपभथ 21 पिणोरु. 22 जोवण. 23 भलि. For Private & Personal Use Only 8 10 15 20 25 www.jainelibrary.org

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