Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 93
________________ १८ पउमसिरि चरिउ [पं० ११५-१३. तो भणइ वाल उबिग्ग-चित्त "इह आगये जणणिऍ कहहि वत्त" ११५ गय धावि भणइ सहि मुंणिय-भाव "आयन्नह वयर्ण महाणुभाव ॥१६ अणुजाणहि पिय-सहि जाहुँ गेहुँ पइदियहु विवड्डइ जह सणेहुँ ॥१७ तह सुणहि कुमार समुद्ददत्त अणुदियह कहावहि स-कुसल-वत्त ॥१८ किं वुच्चइँ" सुपुरिस वारवार पिय-सहिहु सर] तुहु वैर-कुमार" १९ तो कुमरु पजंपइ[22B]"सुद्धसामी"(१) साणद्धइ तिहुयण-मैल्लि कामि ॥ १२० अब्भत्थणु विहिं वि समाणु एउ पुणदंसणु सुंदरि जाउ गेहु" ॥ २१ ॥घत्ता॥ मणु हरिउ कुमारि[हि] हियउ समप्पिउ तासु जणि । 10 संचल्लिय भवणह संख-धूय निरु सुन्न-मणि" ॥ २२ [११] चिरु कुमरु नियच्छेवि साणुराउँ कह कह वि विणिग्गय उववणा ॥२३ संचल्लइ थक्कइ वलइ जाइ पउमसिरि महा-गह-गहिय नाइ ॥२४ संपत्त गहि सा सुन्न वुन्न विगलंत-नयण निरु मणि विसन्न ॥२५ कोमल-पल्लंकि निविन्न वाल रवि-करि मिलाणं नं कुसुम-माल॥२६ अहिलसंइन भोयणु न विय पाणु अप्पाणउँ मन्नइ मुय-सवाँणु ॥ २७ परिहरिय न्हाण-तंवोल-फुल्ल अच्छइ जिव वन्नरि डालि-भुल्ल(?)॥२८ हरिणक-खंड-पंढुर-कवोल नारुहइ स 23 हिहि सहु चक्कडोल ॥२९ विसु मन्नइ कंकण हार दोर हरियंदण कुंकुम रीण चीर(2) ॥१३० 20 न इराइ वीण नलि (2)होइ चित्तु न य पत्तछिज्जु कप्पइ विचित्तु ॥ ३१ न इ पढइ न नच्चइ न य हसेइ पडिवाय ण सुय-सारियह देइ ॥ ३२ न य भार्यइ(१) गंध-कुरंग-पोय परिहरिय असेस वि सुह-विणोय ॥ ३३ ॥ घत्ता ॥ मुच्छिजइ खिजई रोयड वम्मह-सर-सल्लिय-मणहि । संताउ वियंभइ वालहि अंगि असहणु को वि तहि ॥ १३४ . 1 आगइ. 2 जणणिय. 3 गइ. 4 भावि. 5 मुणीउ. 6 वयj. 7 अणुंजाणहिं. 8 जाउं. 9 गेहि. 10 सणेह. 11 स is metrically redundant. 12 धुञ्चहिं. 13 सहहि सरj. 14 दुंटु यर. 15 Corrupt for सुट्ट मामि? 16 °मल्ल. 17 जाउं. 18 सुंउमण. 19 साणुराय. 20 उवविणाउ. 21 पुन. 22 विलवंत. 23 निवन. 24 मलाण. 25 कुमसम. 26 इहिलसइ. 27 भोय'. 28 सवाणु. 29 चुक. 30 पंनुर. 31 नरुहई. 32 सहिंहिं. 33 निसु. 34 वीर. रीग is probably corrupt for वीण or झीण. 35 For वीणि न वि? 36 विविणु. 37 कयकय. 38 परिवारि. 39 सुर. 40 लायह. 41 कुरग. 42 असेसे. 43 रिजाइ. 44 रोयइं. 45 असढणु. The fourth pāda is defective by one mora. soft for at fit? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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