Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 94
________________ पं० १३५ -१५५] विईय संधि [१२] अभिरमइ न आसणि सयणि भवणि उज्जाणिन तरुयरि रुदतवणि'(१)१३५ न वि मंडवि न वि जंपाणि जाणि न सरोवरि देउलि न य निवाणि ॥ ३६ न वि इच्छइ ससिहर-किरण-संगु सिसिरोवयारु [पुणु] डहई अंगु ॥३७ कमलिणि-दल-सिरिसं-मु[23B णाल-हारु चंदणरसु सीयलु घण-तुसारु ॥ ३८ ॥ सिसिरोवंयारु सहियणि पउत्तुं - खई खार-सरिसु मन्नइ निरुत्तु ॥ ३९ अवलोयहि जामिणि चंद-धवल करपल्लव-संठिय-वयण-कमल ॥ १४० उग्गायई पंचम-राउ(१) गीउँ भग्गंगुलि नियं-कुसुमचाउँ ॥ ४१ । "रे रे रई-वल्लह पंचवाण निकारण किं अवहरहि पाण ॥ ४२ "जियxxसहिय जिंतु(?) दुबिलासि पुरिसत्तणु दरिसहि तह जि पासि ॥४३ सयवत्त-कुसुम-सोमालियाह पहरंतु न लज्जसि वालियाह ॥ ४४ ॥ घत्ता ॥ हिम-सीयल-मंडल रोहिणि[-नयणा]णंदयर। मं ससिहर मेल्लहि जलण-समाणफुलिंग-करें ॥ ४५ [१३] अब्भत्थिंउ ससि निडुहइ तो वि सकलंकु वंकु कसु सुड्ड]" होइ ४६ सहि मालहि कुसुमहिं सुहुँ" मियंकु(१) मसिणं मुसुमूरई(24A विगय-संकु ४७ खणु एक्कु तीऍ संताव-हार" थण-मंडलि* मुक्कु कुमार-हारु ॥४८ दीहुन्हे मुयइ नीसास सज्ज सहि वुत्त वसंत मुएवि लज्ज ॥ ४९ "सरसइ-कुलमंदिरु विमल-वंसु कामिणिजण-माणस-रायहंसु ॥ १५० २० । कुंजरवर-पीवर-वाहुँदंडु _ सय-वंधु-भसलैंकुल-कमल-चं? ॥५१ गुण-रासि सविग्गहु पंचवाणु लहु आणहि पिय-सहि सो जुया]॥५२ फुडु कहिउ तुर्दु परमत्थु एहु मयणग्गि-पलीविउ मज्झु देह ॥ ५३ तसु अंग-संग-सीयल-जलेण उल्हावई अंगु असेसु जेण" ॥ ५४ "सुट्ट वि मयणग्गि-करालियाहँ [24]न वि जुत्तु एउ कुलवालियाहँ"॥१५५ 25 1 for तरुयर-रुद्ध-तवणि ? 2 जंपाणिं. 3 जाणिं. 4 यरोवरि. 5 ससिरोवयारु. 6 डहणु. 7 सरिस. 8 चंदणरसु. 9 ससिरों'. 10 यदुतु. 11 खर. 12 जामिणिं. 13 उयग्गायइ. 14 पंचनु. 15 रायगाउ. 16 निदइ. 17 कुसुमवाउ. 18 रे. 19 निकारण. 20 Defective. 21 दुविलास. 22 तुह. 23 रोहिणिआणदयर. 24 फुलीग्ग. 25 अरुछिउ. 2G Two moras missing. सुटु or सुहउ ? 27 Can be read as सुटुं or सुडुं. 28 मसिमूरिइ. 29 °हरु. 30 थणमंडली. 31 दीहू. 32 माणय. 33 पाउ. 34 सययंधुभसलु. 35 °यंदु. 36 यिय. 37 जुया'. 38 तुधु. 39 मजा. 40 उल्हावि. 41 °पालियहि. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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