Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 92
________________ पं० ९५-११४] विईय संधि पणईयण-पंकय-वालसूर कल्लाण-निलय थिय(?)वर-सरीर"॥९५ तो सत्थवाह-सु[उ भणइ "वाल थिय सुंदर सुंदरि सब-काल" ॥ ९६ पुच्छिय पउत्ति सहि परियणेण संभासिय तेण वसंतसेण ॥ ९७ "लोयण' कयत्थइँ जासु अ[21B]म्ह सच्चविउ जेहि मुह-कमलु तुम्ह ॥ ९८ । ॥ घत्ता ॥ मुहु तुम्हहँ दंसणि मन्नं अजु पसन्न विहि ॥ किं सुंदरि लब्भई पुन्न-विहूणेहि रयण-निहि" ॥ ९९ [९] कप्पूर-पउर विरइय(?) सणाहु पउमसिरि देइ तंवोलुं ताहु ॥ १०० मयरंदाणंदिय-भमर-जाल निय-हत्थ-गुत्थ वर-वउल-माल ॥ १ ॥ साणंद लेवि घण-नील-केसि" आणेवि निवेसिय तेण सीसि ॥ २ निम्मल-गुणड्ड हिययं व हारु कुमारिऍ" पयच्छइ सो कुमार ॥ ३ ओलइउ कंठि तिऍ* व[य]ण(?)-तोसु हरिसिजइ सहियणु मणि असेसु ॥४ परिचिंतिवि" दुन्नि वि हियइ एउ "मयरद्ध तासु पसन्न देउ ॥ ५ ऍह वाल हुएसई जासु कति" लावन्न-पुन्न सिय-कुंद-दंति ॥ ६ . 15 अहिणव-मयरद्धय-वेजयंति उतुंग-पओहर कणय-कंति ॥ ७ सा नारि धन्न ऍहु दइ[उ] जाहि मन्नउँ सुहवत्तणु भुयणि ताहि ॥८ पिउ जाहि य ऍहु वैहु-पुन्न-रासि वरि हं वि जुयं(?) तह तणिय दासि"॥९ ॥धत्ता ॥ रइ-वम्मह-रूवई विन्नि वि मणि आणंदियई। 20 xxग्गय-पल्लव (१) ना.224]वइ अविय-रसुल्लियइँ॥ ११० [१०] . वटुंति विहि-विँ अणुराय-चंदि" आणंदिय-परियण-मण-समुहि ॥ ११ । एत्थंतरि आगय पवणवेग पउमसिरि-धावि (१)नामि सुवेग॥ १२ करि [ले]वि तीऍ पउमसिरि वुत्त "होकारई अम्माएवि पुत्त ॥ १३ 23 लहु एहि वच्छि वंधव-सहाउ परिवालइ भोयण-समर ताउ" ॥११४ 1 पणइ'.. सत्यवाहु. सहिय". 4 meaning ? 5 लहइ. 6 °विहुणेह. 7 तंबोल. 8 °दाणंदीय'. 9 °गुच्छ. 10 बउल. 11 केस. 12 °गुणदु. 13 कुमारीय. 14 तिय. 15 वणतोसु. 16 परिचिंतवि. 17 मइइद्धउ. 18 दूएसए. 19 कंत. 20 °पन्न. 21 मयवद्धइ. 22 भुयणिं. 23 ताहिं. 24 यदु. 25 तणीय. 26 °रम्महं. 27 पिविवि. 28 अणिंदियई. 29 Two moras too few. 30 पलपई. 31 वंदि. 32 परियणि मणि समुछि. 33 वादि. 34 होकारइं. पउम० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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