Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 91
________________ पउमसिरि चरिउ [पं०७४-९४ ॥ पत्ता ॥ आणंद-जलाउनु सो सा] मुह-लोयण-चंचलिय(१)। जाणउं राय-परावस- देह परो20A]प्परु तिहि मिलिय ॥ ७४ [७] s"वरलक्खण-भूसिय-ललिय-देहु सहि जाणहि को-इ जुयाणु एहु" ॥ ७५ तहि मुणिवि भाउ सबायरेण पुच्छइ तसु मित्तु वसंतसेण ॥ ७६ "संपुन्न ससि च मणाभिरामु एहु कासुपुत्त तसु किं व नामु" ॥७७ तो भणई पियंकर "सुणसु भद्दे प्रियमाहवि-महुरालाव-सद्दे ॥ ७८ . सिरि-विजय-नराहिव-दिन्न-छत्तु साएयपुराउ असोगदत्तु ॥ ७९ " इह पुरवरि आइउ सत्थवाहु तसु पढम-पुत्तु वर-सिरिय-नाहु ॥ ८० [20A सुंदरि नामेण समुददत्तु जो जणणि वं मन्नइ पर-कलत्तु ॥ ८१ साहेहि सुयणु कह एह वाल कसु तणिय अणोवम-रूय-साल" ॥ ८२ "इह नयरि सेट्टि नामेण संखु जसु सिद्धे महानिहि" परम]संखु ॥८३ तसु धीय एह सुंदर कुमारि पउमसिरि नाउँ मुणि-हियय-हारि" ॥८४ 15 सहि-मित्तहिँ विहि-मि वियक्खणेहिं कुल-जणय-ना, तहि कहिउ तेहिँ॥ ८५ कर जोडिउ तीए कुमार वुत्तु [21] "इय माहवि-मंडवु हरिय-चित्तु ८६ उवविसहि मुहुत्तु महाणुभाव पिसुण व सूर-कर-जणिय-ता" ॥ ८७ ॥ घत्ता ॥ अब्भत्थिय-सारिं [xxxxxxxx] वयणु वसंतहि तेण किउ । 20 ओसहु निरु मिटुं विजुवइड़े अहु जण कासु न होइ "पिउ ॥ ८८ [८] पउमसिरि ससज्झस-तर[ल] नयण ठिय लज्जोहामिय-नमिय-वयण ॥८९ नीसास-समीरण-चंचलाइँ गणयंति केलि-पंकय-दलाइँ ॥ ९० संख-सुय-समुह वोलइ वसंत "इह पिय-सहि पढमं अम्हि पत्त ॥९१ पडिवत्ति कुमारहुँ करहि मुद्धे मं अच्छहि मूढिऍ गुणविसुद्धे" ॥९२ सहि-वयणु सुणिउँ सील[व] इ(?)-जाय जंपइ ईसीसि-खलंत-वाय ॥ ९३ "सागउँ रइ-वजिय पंचवाण जण-णयणाणंदण सुह-निहाण ॥ ९४ 1 °जलाउल. 2 चवलीय. 3 °दुसिय. 4 जागइ. 5 केवं. 6 भो. 7 यणइ. 8 सुणसिं. 9 सादि. 10 दित्तु. 11 °पुराओ. 12 असोगद्दतु. 13 जजणी. 14 सोहेहि. 15 वणीय. 16 सिढु. 17 महानिहिं. 18 पिहिं विं. 19 नासु. 20 माहव. 21 करिय. 22 महुतु. 23 महणुभाव. 24 व्वय. 25 सुर. 26 ताम्व. 27 आभत्थिय. 28 Missing. 29 वयj. 30 वसंतहिं. 31 गाथथिय. 32 होइं. 33 इय. 34 विय (थिय). 35 महि. 36 कुमारदु. 37 मुहे. 38 One mora too few. 39 इसीस. 40 सोगउ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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