Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 89
________________ १४ विवेनिय (?) व पिंहुंवर कल रत्तुपल-दल-सोमाल-चलणि आवज्जिय-सयल - कलीकलाव केयर - कप्पूर - सुगंध-सास उन्नय-वसुब्भव अहिणव-गुण-सुंदरि पउमसिरि चरिउ एत्थंतरि पर्भु वसंतु मासु 10 [184]कंकेल्लि"-फुल्ल-परिमल - सुगंध मंजरिये चूय फुल्लिय अणंत आरत - कुसुम रेहहिँ पलास उत्थर महुरु कोइल - निनाउ चचरिउँ दिति उभय-वि-ह 15 सा अन्न- दियहि परमसिरि बॉल मयणाहि तिलय-कय-वयण-सोह नव-चंपय- विरइय-कन्नपूर कंठट्ठिय- रयणाहरण-हार भुय - विनिहिय-नवकंकण - विचित्त 20 मणि - मेहल - मंडिय-विउल- रमणि आएसिं" जणणिहि " [18B] पियसहि परिवारिय [ पं० ३२- ५१ पीणो-3 -जुयल जलहर भमंतु ॥ ३२ नह- ससि - मह मंथर - गमणि ॥ ३३ कडुयाविय - कल-कोइल-पलाव ॥ ३४ लीलाबहुयं - सुरवहु - विलास ॥ ३५ ॥ घत्ता ॥ Jain Education International 20 उज्जाणु नियवि हरिसिय-मणेण " सहि पेक्खु पेक्खु उज्जाण- लच्छि आसासिय-तिहुयर्ण-जयहु । चार्य लडि मयरद्धयहुं ॥ ३६ [ ४ ] वर-विलासु ॥ ३७ वह प्रिय-वं उम्मच्चि" (?) वियंभिय- वहल-गंध ॥ ३८ अणुणिजाहिँ तरुणिहिँ कुविय कंत ॥ ३९ नं मयण- विहल (?) - विरइयँ (?)-पास ॥ ४० नं वम्मह - - हुंकार -राउ ॥ ४१ मय- घुम्मिर न हि तरुणि-सत्थ ॥ ४२ सिय- कुसुम-दाम-संवलियै-वाल ॥ ४३ गंडयलालिहियै सुपत्तलेह ॥ ४४ कुंडल-मणि - किरणंत रिय-सूर ॥ ४५ थणजुयल - निवेसिय- तार- हार ॥ ४६ सबंगि" य हरियंदण-विलित्त ॥ ४७ वरनेउर-भूसियै- चारु चणि ॥ ४८ 34 ॥ घत्ता ॥ आणंद मणि परमसिरि । गय उज्जाणि अउब- सिरि (?) ° ॥ ४९ [५] करु उब्भिवि भई वसंतसेण ॥ ५० पल्लविय - तरुण-तरुवर मयच्छि ॥ ५१ 13 moras less. 2 पपिउ 3 कलुनु. 4 पीणोरा° 5 लहमसिमयुहं 6 फल°. 7 कदुयाविय. 8 लीलाबहुए. 9 °तिहुयणि. 10 चाउ° 11 मइरघयहु. 12 पर 13 धम्मद. 19 विरल 18 ज्झारत. 20 विरईय. 14 कंकेलिय. 15 उम्मचे. 16 मंजरीय चूय 17 फुल्लीय. 21 मास. 22 उच्छरइ. 23 महुर. 24°वणं. यवियत्थ. 27 पडमसिरि. 28 कुसुंम. 29 संवलीय. 32 ° जुयाण. 33 नविहिय. 33 सव्वंगी. 35 ° मेहर. 38 आरोसिं. 39 जणणी हिं. 40 जाओवसिरि. 41 मणेणं. For Private & Personal Use Only 25 चच्चरिहु. 26 उज्जि30 °लाहिहिय° 31 वंपय. 36 भुसिय. 37 चलण. 42 ई. 43 तरुणि. www.jainelibrary.orgPage Navigation
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