Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 88
________________ । पं० १२-३.] विईय संधि ॥ घत्ता ॥ बंधवजण-वल्लह गुरुयणि' विणिय मइंद-गई। लंघिय-रयणायर राहव-लक्खण दोवि नई ॥ १२ [२] हत्थिण[र]-पट्टणि जय-पयासि नाणाविह-बहुदेसिय-निवासि ॥ १३ कंचण-मणि-निम्मिय-भवण-कर्मि पवणुद्धय-कोडि-पडाय-रम्मि ॥ १४ [1GB]इब्भवई आसि संखाहिहाणु कुंजरू इवं पवर-पयट्ट-दाणु ॥ १५ जिणसासण-पंकय-चंचरीउँ पडिवन्नाणुबउ कुल-पईउ ॥ १६ जीवाजीवाई-पयत्थ-जाणु दक्खिन्न-महोवहि गुणनिहाणु ॥ १७ सीलवइ नाउँ पिय तासु इट्ट सीय व महासइ गुण-गरि?॥ १८ चंद-मुह तुंग-थण पिहु-कलत्त पिय-भासणि जिण-धम्माणुरत्त ॥१९ धणसिरिहि जीउ वड्डिय-पमोएँ चिरु कालु वसेविणु देवलोऍ ॥ २० भुंजेवि भोग सहुँ अच्छराहिँ कंचणमणि सोमणि (2)थणहराहि ॥२१ सीलवइहि सा उप्पन्न धीर्य विहु पुत्तहँ उप्परि पवर-रूयं ॥ २२ ॥ घत्ता ॥ नञ्चंतिहि तरुणिहिँ पट्टणि लोय-सुहावणउँ। वजतेंहि तूरेहि संखिं किउ वद्धावणउँ ॥ २३ ॥ सुमिणंतरि जणणि' कमल-वन्न सिरि दिट्ठ महा-पंकय-निसन्न ॥ २४ तिं दिन्नु ताहि प[म]सिरि नाउँ नव-जोवण पत्त मणाभिरामु ॥ २५ 20 भमरंजण-नील-सिणिर्द्ध-केस पंचमि-ससि-सुंदर-भाल-देस ॥ २६ नीलुप्पल-लोयण वयण-चंद- उवहसिय-लच्छि-लीलारविंद ॥ २७ उज्जल-कवोल-लावन्न-कंति सिय-दसण-किरण-धवलिय-दियंति ॥२८ विवाहर-सुललिय कंवु-कंठ तुटुंग-वीण-थणहार-लट्ठ ॥ २९ कप्पदुम-पल्लव-चार-हत्थ . सुविभत्तय-वरल(?)मण-प1ि7B सत्थ॥३० 25 गंभीर-नाहि तिवली-तरंग- संगय-रोमावलि-रुइरमंग(?) ॥ ३१ 1 गुरुयणिंद. 2 मइंदमइ. 3 लंघीय. 4 °मणिं. 5 नीमिय. 6 °कांमि. 7 ईहवई. 8 जासि. 9 °हिहाणुं. 10 ईव. 11 पवरु. 12 पय९. 13 जिणसासणि. 14 यंकयचचरिउ. 15 पडिवनाणुवय. 16 जीवाजीवापय. 17 °दाणु. 18 नाउ. 19 इह. 20 सीह. 21 °गरिह. 22 ° भासणिं. 23 °पमोअ. 24 (?). 25 थणहराहं. 26 बीय. 27 °रुय. 28 नचंतेहि. 29 लोए. 30 संखी. 31 कीड. 32 जणणीए. 33 नवजोवण. 34 °सणीद्ध. 35 °धवलीयदीयंति. 36 तुटुंग. 37 कप्पदुम्म. 38 गंडीरनाइ. 39 °मग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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