Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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पउमसिरि चरिउ
[पं० १४०-१६१ कय-मंडण जंती पइहि पासि जह सुणइ कंतु पहिलइ पओसि॥१४० "संसारि सुदुल्लहु मणुय-जम्, पालेहि पुत्ति जिण-भणिउ धम्मु ॥ ४१ तुहु निम्मलि वंसि विसालि जाय। नं सीय महा[10A]सइ तुझं माय॥४२
अकलंकु सीलु धारेहि वच्छि पीणन्नय-थण-ओनमिय-वच्छि॥ ४३ 5 जा तीमई मलिणं-चरित्त होइ तहि वत्त नै पुच्छइ कोवि लोई॥४४ नीलज्ज नाहिँ गुरुयणु गणेइ मसि-कुच्चउँ मुहि जं नियह(?)देइ ॥४५ आयन्नवि" वप्पो इ नायरं कु(?) छिन्निजइ सहुँ होटेणे नक्कु ॥ ४६ परपुरिस-निहालणि दोस-जुत्त सम्भाओ वंचइ नियय-कंत ॥ ४७
॥ घत्ता ॥ " गुण-सीलालंकिय नारि अपंकिय वड्डइ कमलिणि जेम जलि' । वंदिजइ लोऍहि गरुय-पमोऍहि चंद-रेह जिव गयणयलि" ॥ ४८
[१२] तिं धणसिरि-चयणिं ताहि कंतु पजलिउ हुयासणु जिम्ब झियंतु ॥ ४९ धणदत्तु भिउडि-भंगुर-निडालु उल्लसिय-सेय-जल-विंदु-जालु ॥ १५० 15 दुच्चारिणि गेहिणि मज्झु एह चंचल-मइ ना[1.01]वई विजु-लेह ५१ पालोत्ति-तंतु जिह कुडिल-भाव कुल-दूसणि दुन्नय-गेह पाव ॥ ५२ फुडु अन्न-पुरिस-वद्धाणुरायति धणसिरि जंपइ एह वाय ॥ ५३ ता दुट्ठहि किं सिर-कमलु लेवि अह नकु सहो?उँ कप्परेवि ॥ ५४
सहसत्ति न करणह एउ जुत्तु अवियारिउ कज्जु दहेई चित्तु ॥ ५५ २० चिंतंतहु तसु मणि एह इट्ट वासहर-मज्झि सहरिसु पइ8 ॥ ५६
उवविसइ तूलि"-पल्लंकि जाव हय पह्नि-पहारि[हि] हियइ ताम्व ॥ ५७ पभणिय महु गेहहु नीसरेहि अन्ज वि महु सेन्जहि आरुहेहि ॥५८ पलक्किय नारि जि फिट्ट-चरित्ति पलक्किय नारि जि वहुऍहि भुत्ति ॥ ५९ पलकिय नारि सील-गुणवंतहु आणवडिच्छी जा नवि कंतहु ॥ १६०
॥ घत्ता ॥ उम्मग्गि पयट्टी तरुण-तरट्टी नव-कुंदेंदु-समुजलिय । [114] वे-पई-अणुकूली (?) जिह नइ पूरि दोन्नि वि पाडइ कुलइँ नियं ॥१६१
1 °मंडणु. 2 जंती. 3 यइहि. 4 जंसु. 5 मह. 6 तुमु. 7 वच्छ. 8 लेवइ. 9 मणिंण. 10 नं. 11 लोए. 12 कचड. 13 यं ववह. 14 आयनुवि. 15 होहेण. 16 नक्. 17 °लंकीय. 18 कमलीणिं. 19 जले. 20 हंगुरि निलउ. 21 दुचारिणी. 22 नावई. 23 सिरिकमलु लेवि. 24 कप्परेमि. 25 रहेइ. 26 पइह. 27 तूली. 28 निसरेहि. 29 मदु. 30 सेजहि. 31 आरुहेहिं. 32 पलीकिय. 33 पलकिय.31 ज. 35 °समुजलियइं. 36 वेवइ. 37 आणुकूलई. 38 पूरी. The rhyming is defective. 39 दोनिय 40 नियकुलई.
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