Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 85
________________ पउमसिरि चरित [पं० १०५-२०० [१५] "धवलं पि कसिणु कसिणं पि धवलु मइँ वुत्तउँ मन्नइ एउ सयलु ॥ १८५ ता अत्थि जाणुवमु इत्थि-राउ थीओ वि परिक्खइँ तावँ भाउ]" ॥८६ चिंतेविण धणसिरि भणई “भाय एहउँ कुसलतणु तुज्झ जाय ॥ ८७ धम्मोवएसु मइँ दिन्नु पुतं किं तेण वि हुयं खंडिय-चरित्त ॥ ८८ निद्दोस महासई विणयवंत कुल-हूसणि ल[13]हु झाणुलेहि कंत"॥८९ धणदत्तिं चारु वियक्खणेण परितोसियजसवई तक्खणेण ॥१९० अह अन्न-दियहि पिय-भासिणीऍ पभणिय जसोय तह धणसिरीऍ"॥९१ जह सुणइ कंतु पयडक्खरेहि आरोविय दोस महायरेहि(2) ॥ ९२ 1" "महु वयणु निसामहि हलें"[जसोएँ नारय-तिरियाउलि एत्थु लोएँ ॥९३ वहु-पुन्नहि लब्भइ मणुय-जम्मु तं पाविउ करि अकलंकु धम्मु ॥ ९४ ॥ घत्ता ॥ निम्मल-कुल-दूसणि अइ-सुह-णासणि" सुहि-बंधव-लज्जावणिऍ" । मं पाउ वियंभहि इह-पर-लोइ [चोरिइ वहु-दुर्ह-] पावणिऍ" ॥९५ [१६] तिं वयणि कोवुल्हसिय-सेउ विनवइ जसोयहि [185] कंतु एउ ।। ९६ "महु अस्थि सुवन्नह भार लक्ख वजिंदैनील मरगय असंख ॥ ९७ विदुम कक्केयण तार हार सोदामणि-किरण-फुरंत दोर ॥ ९८ कुंडल-मणि नेउर-कंकणाइँ वहु-मोल्लइ विविह-विभूसणाइँ ॥ ९९ ३० कुंकुम-कत्थूरी-चंदणाइँ सुपसत्थ' वत्थइँ अइघणाइँ॥ २०० दीसंति न मंदिरि जाइँ जाइँ हरियाइ जसोयइ ताइँ ताइँ ॥१ इह अज्ज वि चोरत्तएँ करेइ गाढं तिं धणसिरि सिक्खवेइ" ॥ २ आविउ जसोय सेजहि वइट्ट सा दुट्ट भुयंगि [व] तेण दि? ॥ ३ उत्तारिय सेजहि पन्हि देवि निभच्छिय पुणु हिय उम्मूलेवि (2)॥४ 3 [14A]सुयरई जसोय निययावराहु "महु काइँ विरत्तउ आहे(?) नाहु ॥५ हउँ सील-सुनिम्मल-उभयपक्ख सीया इव किय चारित्त-रक्ख ॥ ६ पइ-दियहु पयत्ति अवयरेवि जंमह विनवि(?) पिउ संभरेवि ॥ २०७ . 1 परिखरं ताम्ब हा. 2 चिंतविणु. 3 हणइ. 4 हाइ. 5 पत्त. 6 दुय. 7 महासई. 8 कुलदूसणिं. 9 जसम्वइ. 10 °भासिणिए. 11 धणसिरिए. 12 हते. 13 लहई. 14 °भासणि. 15 °लज्जावणीए. 16 Missing. 17 पावणींए. 18 °वुल्हसिउ. 19 किंतु. 20 सुनव. 21 वींद. 22 कंकेयण. 23 नोदामणि. 24 चोरत्तरणु. 25 सेजइहि. 26 दिह. 27 (?). 28 सुंयरइं. 29 निययजावराहु. 30 (?). 31 °सुनीमल. 32 पई. 33 पयती...34 अवयरेहिं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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