Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 84
________________ ०२-10 पढम संधि [१३] जसवइ पिय वयणि निट्ठरेण विज्झाइय वण-लय जिह दवेण ॥१६२ तुट्ठ(?) गरुय-दुक्खह भरेण सिरि ताडिय नावइ मोग्गरेण ॥ ६३ सोहग्ग-मडप्फर भग्गु केम धीरेण रणंगणि भीरु जेम ॥६४ उम्मूलिउ कह सुरयाहिलासु नइ-पूरि जिह दोत्तडि-पलासु ॥ ६५ । संताउ वियंभई हियऍ केम नव-जोवणि वम्मह-जलणु जेम ॥ ६६ रोवंतिऍ निवडहिँ उज्जलाइ अंसुयइ नाइ मोत्ताहला ॥ ६७ "ऍउ अजुा115]काइँ बिणु कारणेण महु रुद्दु नाहु" चिंतइ मणेण ॥६८ "अवराहु न जम्मेवि कियउ कोइ निकालइ मई मंदिरह तो वि ॥ ६९ हउ सब-काल पाणाहँ इट्ट विस-कंदलि जिह द[इ]एण दिट्ठ"॥१७० " भय-वुन्न हरिणि जिह दिट्ठ-सीह जरिय व मुयइ नीसास दीह ॥ ७१ सा रयणि न केवइ खयहु जाइ वर-दाणु सुपत्तहिँ दिन्नु नाइ ॥ ७२ ॥ धत्ता ॥ बहु-अट्ट-दुहट्टर भग्ग-मरट्टइँ तहिँ चिंतंतिहि निसि गलिय । उग्गमिउ दिवायर हय-दोसायरु सा रइ-भवणह निक्कलिय ॥ ७३ 15 [१४] आरत्त-नयण, विच्छाय-वयण उम्मुक्क-हास, पस[12Aरत-सास ॥ ७४ दरमलिय-कंति, कलुणं रुयंति उविग्गं दीण, निसि सयल खीण ॥७५ आहरण-विवज्जिय विगय-हार उच्चिणिय-कुसुम नं कुंद-साह ॥ ७६ जं जसवइ" एहावत्थ दि? धणसिरि सवकि जिह हियइ तु? ॥७७ ० "कलुणं रुयंति तुहु वंधवेण पिट्टिवि निकालिय घरहु तेण ॥ ७८ न वि जाणउँ कारणु किं पि अजु दुवयणइ जंपइ जिह अलज्जु" ॥ ७९ "मं रुयहि वच्छि विसहहि मुहुत्तु" हक्कारिउ वंधवु तीऍ वुत्तु ॥ १८० "धणदत्त कहहि एहुँ फुडउँ मज्झु अवरडु काइ जसवइऍ तुज्झु" ॥८१ अंपइ कणिट्ट "सच्छंद-लील दुच्चारिणि एह अ[12]णज-सील ॥ ८२ 25 निसि समई अज्जु तं तइऍ(?) वुत्तं पर-पुरिस-निहालणि दोस-जुत्त ॥ ८३ ॥ घत्ता ॥ अवगणिय-परत्तिं दुट्ट-कलत्तिं दढचारित्त-विवजियई। उधेव-करंडई फुट्टइ भंडइ काइ-मि" किज्जइ घरि थियइँ"॥१८४ 1 पीयवयणी. 2 for तुहि or उत्तहि ? 3 मडफुरु. 4 रणगिणि. 5 हीरु. 6 °पूरी. 7 वियंहइ. 8 नवजोयणि वंसह. 9 मई. 10 भव° 11 °सीय. 12 निसास. 13 चींततिहि. 14 दरवलिय. 15 उवीग्ग. 16 जसंवइ. 17 दिह. 18 नद. 19 निकालिय. 20 महु. 21 समई. 22 वुत्त. 23 परती. 24 °कलत्ती. 25 °चिवजियई.26 °गरंडई.27 काइम्बि. पउम० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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