Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 82
________________ पं० १२१ - १३९] पढम संधि [१०*] पेक्खेविण धणसिरि दाणु दिति जसवइ-जसोय मच्छरु वहति ॥ १२१ न भणंति किंचि अग्गइ भएण जंपति परोक्खहि सहु जणेण ॥ २२ “अइधम्मसील निच्छिन्न-नेह घरु' लूडई अम्ह नणंद एह ॥ २३ निकारण पूरई परहँ हत्थ मं कहवि भूय एहिथ(?) घरत्थ" ॥२४ । परियणहु मज्झि नं केव इहु(?) मायाविणु पयडिउ नाइ विहु(?) ॥ २५ तं कहिउ ताहि निय-परियणेण धणसिरि परिचिंतई नियमणेण ॥२६ "मइँ दिन्नं सहत्थि सब-काल आसासिय दीण अणाह वाल ॥ २७ कंचणु तिणु मन्निउ धम्म-कजि निकंटइ भाइहिँ तणइ रजि ॥ २८ एवहि विमुक्क-मज्जाइयाउ विसहंति न भाउजाइयाउ ॥ २९ गुण दूसहिँ करहिं अवन्न-वाउ खलु चिंतहि वंधहिँ] गरु[य]-पाउ ॥१३० महु एहइ अवसरि काइँ जुत्तु किं चयमि सयलु घरु सारु वित्तु ॥३१ अहवा मिउ मणहरु सुय-महत्थु को जूयह छदि चयइ वत्थु ॥ ३२ ॥ घत्ता ॥ पूरिय-हियइच्छा आणवडिच्छा वंधव काइँ व दारियहँ । सुट्टै वि पडिकूलहँ निंदणेसीलहँ उइई चंदि किं तारियहँ ॥ ३३ ११] 'अंइनिगुणहँ गुरु-थण-हारियाहँ मोहिज्जइ को वि न भारियाहँ ॥ ३४ महु वयणु न वंधव जइ करंति तो चयमि गेहु नवि एत्थु भंति"॥३५ अविवेय-हुयासणु जणि जाम्वं ईसी संवडिउँ रोसु ताम्व ॥ ३६ ॥ "इह जसमई दुम्मइ दीह-केस तिह करउ होइ जिह पइहि वेस ॥ ३७ लाएविण किंचि कलंकु अज्जु पौडेमि सीसि जैसवइहि वज़"॥३८ ऍउ चिंतिवि धणसिरि कुडिल-चित्त जसवइ करि लेविण तिऍ वुत्त ॥ १३९ * Such readings of the Ms. which have a single consonant in the place of a double one required by the grammar and metre have not been recorded any further, as they are a common feature of the orthography of our Ms. As the number of such readings so far recorded is sufficient to give an idea of this feature, it would not serve any useful purpose to continue noting them down. 1 प्परु. 2 लुडइ. घरइ. 4 परथ. 5 पपडिउ. 6 परिचिंतये. 7 दिन्नं. 8 सहत्थीं. 9 आसामिय. 10 हणाह. 11 एहई. 12 प्परु. 13 यारु. 14 जुयहं छंदी. 15 हारियहं. 16 सुह. 17 परिकूलहं. 18 निदण. 19 ऊई. 20 रइ. 21 गुण. 22 नंति. 23 हुयासण जणिय. 24 ज्झाम्न. 25 संवट्टिय. 26 रोस. 27 जसमइं. 28 जिय. 29 पेस. 30 पाडेमिं. 31 सिसि. 32 जसवइंहि.33 नसम्वइ. 34 लेम्विणु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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