Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 80
________________ पं० ७९-९९] पढम संधि दोसायरु दोस-कलंक-वंकु ओमाणण पावइ जगि मियंकु ॥ ७९ वरचंद दिवायरु तिवतेउ(?) कह विउस-तेय-सम जं भणेय ॥ ८० ॥ घत्ता ॥ तव-तेय-फुरंतउ उवसमवंतउ सयल-जीव-संतावहरु । अखलिय-वरसासणु पाव-[GE]पणासणु धम्मु नाइ पच्चक्खु वरु ॥ ८१ । [७] जंगम-कप्पदुमु पुर-दुवारि लच्छीहरि चेइऍ भवण-सारि ॥ ८२ उवविट्ठ मन्झि वहु-मुणिवराहँ कंचणगिरि व कुल-महिधराहँ ॥ ८३ सुर-सारेंहि महुर-पलावएहि अच्चंतु निसेविउँ सावएहि ॥ ८४ परिवारिउ सुह-सुंदर-जणेण कप्पदुमु नं(?) हरियंदणेण ॥ ८५ सो दिडु मुणिंदु सपरियणेहिँ धणसिरि-धणदत्त-धणावहेहि ॥८६ पणमेवि सूरि वंदति साहु आसिसी देइ वर-धम्मलाहु ॥ ८७ उवविट्ठहँ नव-जलहर-निघोसु तो पभणइ मुणिवरु धम्मघोसु ॥ ८८ "भव-सायरि भीमि अणोरपारि जर-मरण-वाहि-कल्लोल-सारि ॥ ८९ हिंडंतु कुजोणिहि दुकय-कम्म जिउ लहइ किलेसिं मणुय-जम्मु ॥९० 15 धम्मथ-काम-मोक्खाहिहाण चत्तारि हुंति पु[7A]रिसह पहाण ॥ ९१ तह पवरु धम्मु जिणवर भणंति जिं हुंतई अवर असेस हुंति ॥ ९२ तो सो जि" करेवउ आयरेण परियाणवि बुद्धिमया नरेण ॥ ९३ ॥ घत्ता ॥ जह रयणु सलक्खणु कोइ वियक्खणू लेइ वियारि[वि] आयरण। 20 भव-सायर-तारण सिव-सुह-कारणु धम्मु वि तह पंडिय-नरेंण ॥ ९४ [८] हउँ कहवि तुम्ह धम्म परिक्खै अवियारिउ मं में लेहु दिक्खै ॥ ९५ सो धम्मु सारु जहिँ जीव-रक्ख सो धम्मु सारु जहि नियम-संख ॥ ९६ सो धम्मु सारु जहिँ सच्च-वाय सो धम्मु सारु जहिँ नत्थि माय ॥ ९७ 25 सो धम्मु न जहिँ पर-दर-हरणु सो धम्मु न जहिँ पर-पीड-करणु ॥ ९८ सो धम्मु न जहिँ कामिणि-पसंगु सो धम्मु न जहि चारित्त-भंगु ॥ ९९ 1 Should it be करचण्डु ? 2 Proper rhyming requires तिब्वतेय. 3 सासणुं. 4 °पणासj. 5 सुरवारेहि. G पलाएवएहि. 7 निवेसेविउ. 8 कयमुपुदं. 9 सूरी. 10 वदंति. 11 आसिस. 12 मरोरपारि. 13 °कलोल. 14 °कमु. 15 किलेसी. 16 धम्मथ. 17 सोखाहिहा'. 1.8 पहाणु. 19 हुंतई. 20 अवरि. 21 सोजि. 22 सलखलु. 23 वियखणु. 24 लेई. 25 आयारेण. 26 °तारj. 27 °कारणं. 28 हंदु. 29 कहंवि. 30 परिख. 31 दिख. 32 रख.33 सवथाय. 34 नथिम्माय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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