Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 79
________________ पउमसिरि चरिउ [पं० ५८-७४ [५] सा परिणिय[5A] नयण-सुहंकरेण वइसमणहे पुत्तिं संकरेण ॥ ५८ हुय तासु सरीरि असज्झ वाहि अवियायहि मुठ भत्तारु ताहि ॥ ५९ कलुणं अकंदई मुयइ वाह "को सरणु असरणहि मज्झु नाह ॥ ६० 5 निल्लक्खर्ण हउँ कहि कत्थु जामि तुहु विरहि न जीवउँ खणु वि सामि"॥६१ सा धरिय मरंती" वंधवेहि पाऍहि पडेवि गग्गैर-रवेहि ॥ ६२ "मं रोयहि धणसिरि मुयहि सोउ मं मुयहि न दीसएँ नाहि लोउ(?) ।। ६३ तुहुँ अम्हहँ सरसइ जउण गंग कुलदेवयं वि[br]जय जयंति" दुग्ग॥६४ सावित्ति गउरि भयवइ पियास(?) तुह अम्हे हु किंकर भिच्च दास ॥ ६५ 10 जसवइ-जसोय वहुवारियाउ एयाउ तुडु कम्मारिया ॥ ६६ जो आणा-खंडणं करइ अर्जु वप्पेण इ किंचि वि नाहि कर्जु ॥ ६७ ॥ घत्ता॥ घर अम्ह निहालहि परियणु पालहि करहि पुज गुरुसुरवरहँ। मं वहिणि विसूरहि निय-तणु झूरहि देहि दाणु मुणि-दियवरहँ॥ ६८ [६] तहि घरु पालंतिहि जाइ कालु तहिँ पुरवरि आइउँ गुण-विसालु ॥ ६९ विहरंतु महामुणि धम्मघोसु आणंदिय-जण-मणु विगय-रोसु ॥ ७० अन्नाण-वहल-तिमिरोह-हर][GA] निवाण-महापुरि-परमसरणें ॥ ७१ जो पढइ असेसु ई वारसंगु संजमिय-चवल-इंदिय-तुरंगु ॥ ७२ 20 सम-तिण-मणि-कंचण-सत्तु-मित्तु नव-भ-गुत्ति-पालण-पवित्तु ॥ ७३ उबूढ-गरुय-सीलंग-भारु पयडिय-जीवाइ-पयत्थ-सारु ॥ ७४ अइदुक्कर-तव-सोसिय-सरीरु दसविह-मुणिधम्म-निवासु धीरु ॥ ७५ उक्खय-तिसल्लु निज्जिय-कसाउ सिद्धि-वहु-वद्ध-गुरुयाणुराउ ॥ ७६ जोईसौं संकर दड्डे-मयण नारायणु नं नर-बाहि-गमणु ॥ ७७ 25 मंदरगिरि व जो निप्पकंपु कमलायर व उम्मुक-कंपु(2) ॥ ७८ 1 बईसमणह. 2 पुत्तीं. 3 तीसु. 4 सरीरी. 5 मू. 6 अकंदए. 7 निल्लखण. 8 हंडं. 9 केथु. 10 विहरि. 11 खाणो वि. 12 मरंति. 13 गगर. 14 मुमुएहि. 15 तुंहु. 16 °देवई. 17 जयंत. 18 °सु. 19 कींकर. 20 भिच. 21 °वारियातु. 22 एयाहु. 23 मुधु कंमारियाहु. 24 °खंडणु. 25 अजु. 26 कजु. 27 परियj. 28 पूज. 29 ढहि नि. 30 °दियवरह. 31 पालतिहि. 32 आईउ. 33 आणंदिउ जणमण. 34 तिमरोहहरj. 35 नेव्वाण. 36 परममरनं. 37 मसेसुई. 38 सम्मत्तिण. 39 °सत्त. 40 °पयथ°. 41 दुकरु. 42 उखय. 43 सिधि. 44 जोइसरु. 45 दढ° 46 °याहि. 47 कमलायरो. 48 उम्मक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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