Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 76
________________ कइ-धाहिल-किड पउमसिरि चरिउ [ पढम संधि ] धाहिल दिवदिहि कवि जंपई अहु जण! रोलु मुएविणु संपई ॥ १ निसुणह साहमि कन्नरसायणु धम्म-कहाणउँ वहु-गुण-भायणु ॥२ । ॥ घत्ता ॥ कवडत्तर्ण-भाविं विसम-सहावि थेवेण वि तारु नै हवि(?) । धणसिरि गुण-सारहु निय-भत्तारहु हुय अणि? जिह अन्न-भवि ॥ ३ [१] तिह कहवि" विसेसिं सुणह धम्मु पउ म सि रिच रिउ निसुणेहु रम्मु ॥४॥ ललियक्खर-पयडिय-अत्थसारु तरुणीयणु नावइ वहु-वियारु ॥५ पणमेप्पि] चंदप्पह-जिणिंदु निम्मूलुम्मूलिय-दुक्ख-कंदु ॥ ६ महसेणराय-करकमल-सरि सूरु (१) लक्खण-सुउ?] दुन्नय-रय-समीरु ॥७ सारय-मियंक-कर-धवल-दित्ति हर-हास-विमल-वित्थरिय-कित्ति ॥ ८ कंदप्प-दंति"-केसरि-किसोरु पंचेंदिय[2]-दुट्ठ-भुयंग-मोरु" ॥९ 15 उप्पाडिय-दारुण-माय-सल्लु मुसुमूरिय-मोह-महारि-मल्लु ॥ १० उल्लंघिय-दुत्तर-भवसमुदु तियसिंद-नमिय-चलणारविंदु ॥ ११ तेयलोक-[xx]हु निद्दलिय-माणु परमेसरु सासय-सुह-निहाणु ॥ १२ वउतीस-महा-अइसय-समग्गु गुण-सायरु पयडिय-मोक्ख-मग्गु ॥ १३ ॥ घत्ता ॥ पणमिवि जय-सामिणि नय-सुरकामिणि वागेसरि सिय-कमल-कर।। णयहँ सम्भावि जीएँ पभाविं कविहिँ पयट्टइ वाणि वर ॥ १४ ____1 Beginning नमः श्रुतदेवाय. 2 °दिहि. 3 जंपई. 4 अदु. 5 संपई. 6 °कहाणडं. 'पहु. 8 कवडतj. 9 वंसम. 10 should it be तारुन्न ?. Metre requires one nore mora. 11 कहवि. 1) विसेसीं. 13 पणमेप्पणु. 14 निम्मूलुयमूलिय. 15 To ne properly with समीरु, it should be something like °सारु. 6 लखणस. 17 °हार. 18 च्छित्थरिय. 19 °दंती. 20 °किसोरि. 21 'मोरि. 22 °सलु. 3 मसिमुरिय. 24 °मलु. 25 उलंघिय. 26 दुतरु. 27 °समुदु. 28 नमींय. 29 तियलोकहु. Cwo moras are too few. 30 निदलियमाणुं. 31 मोख. 32 The closing tanza of the Kadavaka is nowhere in the Ms. prefixed with his designation, which is otherwise invariably seen in such Apa. hrainsa poems. 33 °सभाविं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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