Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 74
________________ ललियछाय ४ ९९ ललितच्छाय लामण २.३० ? लिइ १.९४ [ लाति ] गृह्णाति (गु. ल्ये ) लीव ३. १५ ( दे. ७. २२) बाल ली ३.६९ [ लेखा ] रेखा लुहंति ३. १३१ मार्जयन्ती (लूडइ १. १२३ लुण्टति वइसइ २. २११ उपविशति ( गु. बेसे ) वइट २. १७३; वइट्ठय २. २४९ उपविष्ट ( गु. बेहुँ ) शब्दकोश: वमाल २.२१९; २. २२५ (दे. ६. ९०) कलकल वरहिणि ३. १०९ बर्हिणी बलइ २. १२४ वलति ( गु. वळे ) वहुवारिया १. ६६ वधू (गु. बहुवारु) वंदिण २. २२६ बन्दिन् वसमण १. ५८ वैश्रवण वद्विज्जइ २. १९३ पिष्यते (गु. वाटवु, वटा) विंझाडइ ४. ४१ विन्ध्याटवी वड १. २१८ मूर्ख वरि २. १२८ वानरी ( गु. वाँदरी ) (वप ३.९१ (दे. ६.८८ बध्पो) पिता (गु. बाप ) वाइय २. २४७ वादित ( गु. वायु ) वाडवसिहि ४. ४२ [वाडवशिखिन् ] वडवानल वाणियउ ४. ४ वाणिजकः ( गु. वाणियो) वारवार २. ११९ वारंवार वावण २. २२७ वामन वासहर - मज्झि १. १५६ वासगृहमध्ये वाह ४. ४८ बाप्प वाहइ २. १६९ बाधते विद्वस् विउस १.८० वि= द्वे (गु. बे ) विहु २. २२ ( गु. बेड ) विनि-वि २.११०; ४.९, १०; विन्हि १. ४३ (गु. बने) विहिं वि २.८५, १२१; ४.८६ विहि-म्वि २ १११; विहि-मि ३.८० विच्छाई ४. ५१ विच्छाया, निष्प्रभा | विच्छोहिय ४. २८ [ विक्षोभित ] वियोजित विज्झाइय १.२६२ म्लापित विडप ४. ५२ [ दे. ७. ६५ ] राहु बिणु ४. ५३ बिना Jain Education International विम्हइय ४. १४७ विस्मित विम्हि ४ १०१ [ विस्मितम् ] विस्मयः वियप्पह ४ १०७ विकल्पते वियरेविणु ४. ७६ वितीर्य वियारि ४. ३२ विचारिन् वियाल ३. १०८ [विकाल ] (दे. ७. ९० ) संध्या विसंकुल ३. ४१, ६३ [ विसंस्थुल ] विह्वल विसूरहि १. ६ (दे.) खिद्य विहडिय ४१५, १२५ विघटित विहाइ २. ११८ विभाति, प्रभातं भवति विहाव २. २२२ विभाव्यते विहुणिय ४ ९९ विधूत वुद्धि ४. १५ वृष्टि बुम्न १. १७१; २. १२५; ३. १२७ [ = विघ्न ] (दे. ७. ९४ ) भीत ४७. वुनमण ४. २ विग्नमनस् वेडन्विय ४. १५१ वैकुर्विक वेयाल २. ५४ वेताल वेवाहिय २. २५७ वैवाहिक वेविर ३. १२९ वेपमान वोलिय १. २२३; ३. ३८ व्यतीत वेस १. १३७ द्वेष्या वोल्लइ २. ९१, ३. ८४ वदति ( गु. बोले ) वोल्लाविड ३. १११ ( गु. बोलाव्यो ) सइ १.२१ स्वयम् ; सकूँ जि १.५८ स्वयमेव सकुसल २. ३१८ स्वकुशल ( ? ) सकोमल २. १७१ कोमल ( गु. सकोमल ) सक्कर ४. ५४ शर्करा, शकल सच्च बिउ २. ९८, १५९, १७३ [ सत्यापित ] प्रत्यक्षीकृत सज्ज २. १४९ सद्यः सणिच्छर ३. १०२ शनैश्वर सणेह २. १२७ स्नेह सत्थाह २. १६८, १८३, २१२ सार्थवाह सन्न ३. ११६ संज्ञा ( गु. सान ) समुड्डिय ४ १४४ समुड्डीन सम्मत्तण १. २३२ सम्यक्तव सया ४. १७५ सदा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124