Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 35
________________ पउमसिरि चरिउ छे. केटलेक ठेकाणे प अने ब नो भेद प (ब) करीने, अर्थात् पना पेटमां बिंदु करीने बताव्यो छे. सुज्ञ वाचक आ विलक्षणताओने मुद्रित-पाठनी नीचे पादनोंधमा मूकेला मूळप्रतिना पाठो उपरथी सारी रीते समजी शकशे. ५. छंद विषे तो मारा मित्र प्रो० भायाणीए विस्तृत चर्चा करी छे. तेथी हुं अहीं आख्यान काव्यो अने कडवक बंध विषे ज बे बोल कहेवा योग्य धारं छु. अपभ्रंश चरित काव्यो संधिमां लखाता. संधि ए संस्कृत महाकाव्यना सर्ग जेवो. संधि कडवकोनो समूह अने तेना आरंभमां ध्रुवपद; अने अंते धत्ता. मूळ कडवकना देहमा ८ पंक्तिओ ज आवती. श्रीहेमचन्द्राचार्यना 'छंदोऽनुशासन'ना अध्याय ६नु आदि सूत्र अने तेनी टीका अत्रे द्योतक छे. संध्यादौ कडकान्ते च ध्रुवं स्यादिति ध्रुवा ध्रुवकं घत्ता वा । कडवकसमूहात्मकः सन्धिस्तस्यादौ चतुर्भिः पद्धटिकाद्यैश्छन्दोभिः कडवकम् । तस्यान्ते ध्रुवं निश्चितं स्यादिति ध्रुवा ध्रुवकं घत्ता वेति संज्ञान्तरम् । स्वयंभूना 'पउमचरिउ'मा आठ ज पंक्तिनुं कडवक दृष्टिगोचर थाय छे (जुओ मधुसूदन मोदीः 'अपभ्रंशपाठावली'मा 'पउमचरिउ'- अवतरण : पान ३ अने आगळ) पाछळयी लगभग दशमा सैकामां कडवकनी पंक्तिसंख्या वधी अने कडवकमां ज पचासयी सो जेटली पंक्तियोनो समावेश करी शकातो एटले संधिने एकम तरीके राखवा करतां कडवकने ज एकम तरीके राखीने काव्यो रचावा लाग्योः अपभ्रंशकाव्योमा मोटां चरित काव्यो बाद करतां छूटां छूटां केवळ कडवकबद्ध आख्यानो अने संधिओ पाछळना समयमां लखावा लाग्यां : दा. त. हेमचंद्राचार्यना गुरु देवचन्द्रसूरिनु 'सुलसक्खाणु' अने तेषोज 'नम्मयासुंदरिसंधि'. मध्यकालीन गूजराती आख्यान काव्यो अने ठेठ प्रेमानंदनां आख्यान काव्योनां मूळ आ रीते अपभ्रंश कडवाबद्ध चरित काव्योमा छे. कडवाओना आरंभमां ध्रुवपद अने अंते 'चलण' अने वचमां कडवानो देह-आम अनेक कडवांनुं आख्यान. आ आख्यान शैलीनां मूळ अपभ्रंशमा छे. जो बहु ज व्यवस्थित रीते तपासीए तो वस्तु अथवा रड्डा तथा छप्पय पण एक प्रकारनां लघु कडवां ज छे. अहीं आ बाबत प्रस्तुत न होवायी विस्तृत विमर्शने अवकाश नथी. ६. कवि पोतानुं नाम अने ते साथे पोतार्नु उपनाम धारण करी काब्यादिमा अने संध्यन्ते मके छे. धाहिले धारण करेलुं 'दि व दि हि ए उपनाम प्रत्येक संधिनी अंत्य घत्तामां अने काव्यारंभे आवे छे. नामांकनी प्रथा जयदेवना 'गीतगोविंद'नी अष्टपदीओने अंते मालम पडे छे; तेम ज मध्यकालीन देश्यभाषाना कविओए पोतानां पदोनी अंस्य पंक्ति पोताना नामथी अंकित करी छे. श्यक अने लक्ष्म्यंक सर्गान्ते श्लोकमा माघे तथा भारविए + ए वखतनी नागरीलिपिना वळणमां 'ब' नो आकार एवो पण रूढ हतो ते केटलांक वीजा पुस्तको तेम ज शिलालेखोमां पण दृष्टिगोचर थाय छे.-जिनविजय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124