Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 48
________________ प्रथम संधि कडव क ११ ( पण ) तद्दन निर्गुण होय तोये बहु स्तनभार वाळी भार्याथी कोण न मोह पामे ? (एटले) जो मारा भाईओ मारुं वेण नहीं राखे, तो हुं घर तजी दईश. एमां जराये शंका नहीं.” ( पछी) तेनामां अविवेकरूपी अग्नि प्रगट्यो एटले तेनो रोष जरा वध्यो, “भा दुष्ट बुद्धिनी ने लांबा केश वाळी यशोमती तेना पतिने अप्रिय थई पडे तेवुं हुं करूं. यशोमतीने आने कोईक कलंक लगाडीने तेना माथा पर वज्र पाहुं." कुटिल चित्त वाळी धन श्री ए भावुं विचारीने, ज्यारे रात्रीना आरंभमां शणगार सजीने यशोमती पोताना पतिनी पासे जती हती, त्यारे तेनो हाथ पकडीने तेनो पति सांभळे तेवी रीते तेने कह्युं, “पुत्री, संसारमां मनुष्यजन्म बहु दुर्लभ छे. ( माटे) जिनदेवे कहेलो धर्म तुं पाळजे. सुं निर्मळ ने मोटा कुळमां जन्मी छो भने तारी माता तो जाणे के महासती सीता ज छे. एटले बेटा, पुष्ट भने ऊंचा स्तनथी नमेला वक्षःस्थळवाळी तुं तारुं शील निष्कलंक राखजे. जे स्त्रीनुं चारित्र्य मलिन होय, ते नी जगतमां कोई वात पण न पूछे. तेवी निर्लज्ज स्त्रीओ वडिलोने पण गणती नथी. बांधवोना मोदा पर मशनो कूचडो फेरवे छे. तेनो पिता पण तेना विशे सांभळीने रंक जेवो थाय छे (?) ने होठ साथे तेनुं नाक कापी नाखवामां आवे छे. पर पुरुषने निहाळवाना दोषथी युक्त तेवी स्त्री स्वभावथी ज पोताना पतिने छेतरे छे. गुण अने शीलथी अलंकृत अने कलंक विनानी स्त्री, जळमां कमलिनीनी जेम, वृद्धि पामे छे, लोको गगनतलमांनी चंद्रलेखानी जेम तेने घणा हर्षथी वंदन करे छे." कडव क १२ धनश्रीनां आ वचनोथी, जेना कपाळमां भम्मर तणाई गई छे अने छूटेला प्रस्वेद जळनां बिंदुओनी जेना पर जाळ बाझी गई तेवो तेनो ( यशोमती नो) पति धन दत्त धमाता अद्मिनी जेम सळगी ऊठ्यो: “आ मारी गृहिणी खराब चारित्र्यनी लागे छे. ए वीजळीना चमकारा जेवी चंचळ बुद्धिनी, करोळियाना तांतणानी जेम कुटिल स्वभावनी, कुळने कलंक लगाडनारी, कुनीतिनुं घर अने पापणी छे. चोक्कस ए परपुरुषमां आसक्त छे. एटले ज धन श्री आवा शब्दो बोली. तो हवे ए दुष्टानुं शिरकमळ तोडी लऊं ? के होठ साथै नाक कापी लऊं ? पण सहसा आ कर ठीक नहीं. (कारण) अविचारी कामथी चित्तमां दाह थाय छे." मनमां ते आम विचार करतो हतो त्यां तेनी प्रिय स्त्रीए आनंदथी वासगृहमां प्रवेश कर्यो. जेवी ते पलंगपरनी शय्या पर बेसवा आय छे, त्यां एने छातीमां लात लगावी ते बोल्यो, “नीकळ मारा घरमांथी ! हजी पण तुं मारी शय्या पर चढे छे ? जेनुं चारित्र्य नष्ट थयुं छे ते स्त्री लंपट छे. जेने अनेक लोकोए भोगवी छे ते स्त्री लंपट छे. शील भने गुणवाळा पतिनी जे आज्ञा नथी उठावती ते स्त्री लंपट छे. जेम पूर वडे नदी पोताना बने कांठा तोडी पाडे छे, तेम उन्मार्गे प्रवृत्त थयेली ने बे पतिने अनुकूळ (?) एवी प्रगल्भा तरुणी खीलेला कुंदपुष्प अने चंद्र जेवा समुज्वळ पोताना बने कुळने पाडे छे ( कलंक लगाडे छे). " २१ कडव क १३ पतिना निष्ठुर वचनथी यशोमती, दावानळथी वनलता करमाय तेम करमाई गई. दुःखना भारे बोजाथी अत्यंत त्रस्त थई गई. जाणे के तेना माथामां मुहर मायुं. जेम रणांगणमां भीरपुरुष भीरुने भगाडे तेम तेनो सौभाग्यनो गर्व भांगी गयो. तोफानी नदीना पूरथी कांठानुं पलाशवृक्ष उखडी पडे, तेम तेनो सुरतनो अभिलाष निर्मूळ थयो. नवयौवनमा : मन्मथ रूपी अनि फेलाय तेम तेना हृदयमां संताप विस्तरवा लाग्यो. रडवा मांडतां, जाणे के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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