Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 71
________________ पउमतिरि चरिउ जिउ ४. ६४ जीवः | तुरिउ २. २३०, ३.९५, तुरियउ ३. ८७ जीविएस ३. ५५ जीवितेश __ त्वरितं (गु. तुरत, तुरंत, तरत) जुयाण २. ७५, १५२ युवन् तूलि १. १५७ तूलिका, तूलशय्या जोइसिउ २. १८४ ज्योतिषिक (गु. जोशी) जोइसु ४.७९ ज्यौतिषम् (गु. जोश) थक्कइ २. १२४, ३. ४३ [स्था+क] तिष्ठति, जोवइ ३. ८४, जोयइ ४. ३१ पश्यति विरमति (गु. थाकवु) (गु. जोb); जोइजइ ४.३२ जोयाविड थाम १. २३ [स्थामन् ] स्थान (गु. ठाम) ३. १३२ अन्वेषित थेव १.३ स्तोक झत्ति ३. ८४, ८५, ११५, ४. ९७ झटिति दयावण १. ११८ दयनीय (गु. दयाम]) झंप ३. ५९ [ झम्पा] दरमलिय १. १७५ (दे.) मृदित झायइ २.२११ ध्यायति दीउन्ह २. १६६, दीन्ह २. १४९ दीर्घोष्ण झिजइ ४. ३०; झिज्झइ ३. ५६ क्षीयते दीहर ४.९९ दीर्घ झियंतु १. १४९ (१) दीहरच्छि ३. २८ दीपाक्षी झुलंत २. २३४, १९८ (?) प्रेङ्खोलयत् दुकय १. ९० दुष्कृत (गु. झुलतु) दुश्चारिणि १. १५१, १८२, ३. ८७, १०४ रह २. १६२, ३. ५० क्षीयते (गु. झूरे) [*दुश्चारिणी ] दुश्चरिता दुवाय ३.१०३ दुर्वात ठाइ ४.१०१ [स्थामन् ] स्थाने दुवार १.८२ द्वार दुवालस ४. १२२ द्वादश डसिय ३. १०२; दष्ट (गु. इस्यु) दुब्वाइय ३. १२९ दुर्वाताहत डहइ २. १३७ दहति दूराउल १. २४ [दु+राजकुल ] दुष्ट-नृप डहण ४. १७१ दहन दूसह ४. ५९ दुःसह डंड ३. ९८, ४. ५ दण्ड (गु. डाँडो) देउल २. १३६ देवकुल (गु. देवळ) डालि २. १२८ (दे. ४. ९) शाखा (गु. डाळ) देयर ३. ९१ देवृ (गु. दियर, देर) ढहस ३. ९३ (१) देवंग २. १९८, २३३ [ देवाङ्ग] दिव्य (वस्त्र) ढोयइ ४.३१ ढोकते, उपगच्छति दो-वि २. २४, ४७ द्वौ+अपि दुन्नि-वि २.१०५; दोनि-वि १. १६१; दोहि तहय १. २१३ तदा मि २. १९९; दोहि वि २. १८४ तकर ४. १०८ तस्कर दोत्सडि ११६५ [दुस्तटी] दुष्ट-नदी तणउ ४ ६४; (स्त्री) तणिय २. ८२, १०९, दोर १. १९८ दोर, कण्ठाभरण-विशेष(गु.दोरो) तणइ १. १२८ सम्बन्धार्थे तयणंतरि२. १७९ तदनन्तरे धम्मकहाणय १. २; ३.३४ धर्मकथानक तरही १. १६१ प्रगल्भा धावि २. ११२, ११६ [*धावी ] धात्री (गु. धाव) तरुयर २.५१, १३५ तरुवर घीय ४. १७, १८, १९ (इत्यादौ) दुहिता तवणीय १.३५ तपनीय, सुवर्ण धूय १.४४, २. ११२,१८१ (इत्यादौ) दुहिता तिमर ३. १३४ जन्तुविशेष (गु. तमाँ) - धूयत्तण ४.७ दुहितृस्व तीमइ १.१४४ स्त्री धोव १.२१४ धौत तुट्ट ४. ९२, तुट्टय ४.५४ त्रुटित (गु. तूटई) तुझंग २. २९ त्रुटिताङ्ग | न. २. १२, ५५; नं १. २६; २. ९, १२६; तुद्ध १. ६६, २२०; २. १५३ तव ३. १०३; नाइ १.८१,१६७,१७२, २२६; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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