Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 69
________________ ४ पउमसिरि चरिउ उजोवय २. २३३ उद्दयोत | कड्य-वि ३. ३२, ३४, ३५, ३६, ३७; उत्तारिय १. २०४ अवतारित (गु. उतारी) । ३. १२६ कदाऽपि उत्ताल २. २३१ शीघ्र (गु. उतावळु) कइय? ३. ५१ कदा उत्थरइ २. ४१ [अव+स्तृ] निःसरति कच्छुरिय २. २१२ [ दे.] व्याप्त उद्दलिय १. १९ [ उद्दलित] (दे. १. १०० कडुयाविय २.३४ कटुकीकृत उहरित=विकसित) विकसित कणयच्छइ ४.८ कनकच्छवि उप्परि ४.७४ उपरि (गु. उपर)। कणवीर ३. १२८ करवीर (गु. कणेर, करेण) उप्पाडिय १.१०,३.१३० उत्पाटित, उन्मूलित कप्पइ २. १३५ कल्पते, विरचयति उब्भड ३. १०१ [उद्भट ] विकराल कप्परेवि १. १५४ कर्तयामि उडभासिय १. १९ [ उद्भासित ] प्रकाशित कम्मारिया १. ६६ [कर्मकारिका] दासी उम्मिल्ल २. ५६ उन्मीलित, विकसित कयवर १.२४ [ दे.] तृणाद्युत्कर उल्ल ३.४६ आद्र उल्लोय २. १९८, उल्लोवय २. २३३ उल्लोच कयाइ-वि ४.२१ कदाचित्+अपि करंडउ ४.३५ करण्डक: [दे. १. ९८] वितान करंविय ४.११० करम्बित उल्हसिय १. १९६ [ उल्लसित ] उद्गत उल्हावइ २. १५४ विध्मापयति करि-वरतणु ३. १२९ [करिन्+वरतनु] करिणी उवएसिय २. २०१ उपवेशित कलत्त २. १९ [कलन] जघन उवणमिय ४. ६८ उपनत, प्राप्त कहिजतउँ ४. १०२ कथ्यमानम् उविय ३.३ परिकर्मित, उल्लीढ कंचुइजत २. २५२ कञ्जक-संवेष्टयमान उविगग १. १७५ उद्विग्न काइँ ४. ५९; काँइ १.२१५; काइ १.८१ किम् उव्वलंत २.७० कम्पमान (गु. काँइ, काँ) उब्वेव १.१८६ उद्वेग कामहल्लि २. १७३ कामभल्लि उन्वेवकरण्ड १. १८६ उद्वेगकरण्ड किन्ह ३.५६ कृष्ण किर ३.२१ किल उसव १.२५ उत्सव किलकिलिय ३. ८ कृतकिलकिलशब्द एक्कारस ४.७९ एकादश किह ४.१८१ कथम् एरावणस्थ २. २२३ ऐरावतस्थ किंचि १. १३८ किञ्चित् ; किंचि-वि १. ६७ एवहि १. १२९, ४. ११८ इदानीम् किंचित्+अपि एवंविह २. १८९ एवंविध किंपाग ४.७२ किम्पाक १०९ एषः, ऍह २.१०६ एषा किंव २.७७ किंवा कुमर २. १२८, २३८, ३. १३२ (इस्यादौ); ओकत्तण ४. १६९ अवकर्तन ____ कुमार २.२४ १ (इत्यादी) कुमार (गु. कुँवर) ओणय ४. ५० अवनत कुवेर २. ७२ कुबेर ओमाणण १. ७९ अवमानना कुरलंति ३.१०३[कुरल<कुरर=टिटिभ] कूजन्ति ओयाइउ ३. ५५ उपयाचितकम् कुरुल ३. १०२ [ दे. २. ६३ निर्दय ] क्रूर ओलइय २. १०४ [ अवलग्+इत] अवलग्न ओहामिय २. ८९ अभिभावित, तिरस्कृत कुसुमाल १. २४ [दे. २. १० ] चौर ओहामिणि १. ५७ (स्त्री.) अभिभाविका, कुंट १. ११८ कुब्ज तिरस्की कुंपल २. ५५ कुमार (गु. कुंपळ) । केयारउ ४. १४५ केकारवम् का-वि २. १५७ कति+अपि केरी १. १२२ सम्बन्धार्थे (गु. केरी) • एवविध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124