Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 53
________________ पद्मश्रीचरित नागकन्या छे, के सोनलवर्णी विद्याधरी छे ?" मनमां विस्मित थईने तेनुं रूप जोतां तेनी आंखो देवनी जेम अनिमिष बनी गई. मदनातुर अने कंपतां अंगवाळो ते, मंत्रोथी वश करेला सर्पनी जेम ऊभो रही गयो. (अने) ए सार्थवाहनो उत्तम पुत्र पम श्रीने (पण) दृष्टिगोचर थयो (के तरत ज तेने थयुं), "शुं आ ते शेष नाग, सुरेंद्र, स्कंद, नारायण, सूर्य, कुबेर के चंद्र छे ? के र तिरहित म द न के नाग के तु छे ?" भाम विचारतामा तेने स्वेद छूट्यो. पेलो आनंदाश्रुथी भाकुळ बनी गयो अने आनां मुख अने लोचन चंचळ बनी गया (?)-जाणे के प्रेमपरवश शरीरवाळां त्यां परसर मळ्यां (?). कड व क ७ "उत्तम लक्षणोथी भूषित सुंदर शरीरवाळो पेलो युवक कोण छे ते, हे सखी, तुं जाणी आव" (एम पद्मश्रीए कह्यु एटले) तेनो हृदयभाव जाणीने व संत से ना तेना (समुद्र दत्तना) मित्रने घणा ज आदर साथे पूछवा लागी, "पूर्णचंद्र समान मनोहर आ कोनो पुत्र छे ने तेनुं नाम शुं छे ? " एटले प्रियं करे कडं, "कोयल जेवा मधुर बोलवाळी हे भद्रे, सांभळ. श्री विजय रा जाए जेने छत्र आप्यु छे ते सार्थवाह अशोक दत्त अयोध्या थी अहीं आवेलो छे. तेनो उत्तम लक्ष्मीयुक्त पहेलो पुत्र नामे समुद्र दत्त जे परस्त्रीने माता समान माने छे तेज, सुंदरी, भा छे. हे सुतनु, कहे, पेली अनुपम रूपनिधि बाला कोण छ, ने ए कोनी (पुत्री) छे?" (वसंत से ना बोली,) "आ नगरीमा शंख नामे शेठ छे, जेने महानिधि पद्मशंख सिद्ध थयो छे. हे सुंदर, मुनिओना मनने पण हरी लेनारी आ कुमारी ते तेनी पुत्री नामे पद्म श्री छे." ते विचक्षण सखी अने मित्र बंनेए तेना (पद्म श्रीना) पितानुं नाम अने कुळ (समुद्र दत्तने) कहां. तेणे (वसंत से नाए) हाथ जोडी कुमारने कडं, “हे महानुभाव, आ मनोहर माधवीमंडप छे तो पिशुन सेवा सूर्यकिरणोथी जेमने ताप लाग्यो छे एवा (आप) घडीक (भहीं) बेसो.".........तेणे व संत नुं वेण स्वीकार्यु. हे लोको, अतिशय मीटुं (ने वळी) वैद्ये फरमावेलु एवं ओसड कोने प्रिय न लागे? कडवक ८ मुंझवण भयो तरल नयनवाळी पम श्री लजाथी अभिभूत अने नमेला वदने ऊभी रही. निःश्वासना पवनथी हलती लीलाकमळनी पांदडीओ ते गणवा लागी. वसं ते शंख नी पुत्री सामे (जोईने) कयुः "प्रिय सखी, अहिंया पहेला आपणे आव्या छीए. तो हे विशुद्ध गुणवाळी मुग्धा, कुमारनुं स्वागत कर. मूढ, (एमने एम) ऊभी न रहे." सखीनुं वचन सांभळीने शील व ती नी पुत्री सहज थोथराती बोलवा लागी, "लोकोना नयनने आनंद आपनार अने सुखना निधानरूप हे रति रहित काम देव ! पधारो (स्वागतम्). (तमे) अर्थी जनो रूपी कमळना बाल सूर्य छो, कल्याणना धाम अने उत्तम शरीरवाळा छो.' एटले सार्थवाहनो पुत्र बोल्यो, "हे बाला, तमारं स्वरूप सदा सुंदर दीसे छे (?).” (पछी तेनी) सखी अने परिजनोने तेना खबर पूछी (?), तेणे व संत सेना ने कह्यु (?), "तमारा मुखकमळनां दर्शन थयाथी अमारां लोचन कृतार्थ थयां छे. तमारा मुखनां दर्शन थयाथी हुँ मार्नु छु के विधि आजे (मारा पर) प्रसन्न छे. सुंदरी ! शुं पुण्यविनानाने रननिधि मळे खरो? कड व क ९ प्रचुर कपूरवाळु पानबीडं बनावीने पद्म श्री ए तेने आप्यु. (तेमज) सुवासे करीने भ्रमरसमूहने आनंदित करती अने पोताने ज हाथे गूंथेली उत्तम बकुलमाळा (पण आपी, जे) तेणे (कुमारे) आनंद साथे लई ने घाटा काळा केशवाळा (पोताना) मस्तक पर धारण करी. कुमारे निर्मळ अने गुणभर्या हृदय जेवो स्वच्छ अने सूत्रयुक्त हार ते कुमारीने आप्यो. वदनने प्रसन्न करता ते हारने तेना कंठमां स्थान मळ्युं. बधीये सखीओ मनमा हर्षित थई. बंने जण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124