Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 40
________________ प्रासङ्गिक भूमिका पउमसिरिचरिउमां प्रयुक्त छंदो १ कडवक-देहमा प्रयोजायेला छंदो महाकाव्य प्रकारनां अपभ्रंश काव्योना कलेवरमा सामान्यतः पद्ध डि का, वद न क अने पारण क ए त्रण छंदो योजाय छे. पउ म सि रि चरि उ मां आमांथी मात्र पद्धडिका (४+४+४+rive.) ज मुख्यत्वे वपरायो छे; पारणकनो अभाव छ, अने वदनक (६+४+४+-) मुख्य छंद तरीके नहीं, पण एकविधता टाळवा वपरायेला बीजा बे छंदोनी जेम काममा लीधो छे. वदनकमां रचायेला खंडो आटला छे: १,१-२ १, १७-२५ (= पहेली बे पंक्ति सिवायर्नु बीजं कडवक) १, १०८-१०९ (= ९ मा कडवकनी पहेली बे पंक्ति) ३, ९०-९७ (=७ मुं कडवक, पंक्ति ५-८) ३, ९९-१०९ (= ८ मुं कडवक) ३, १३४-१३५ (= १० मुं कडवक, छेल्ली बे पंक्ति) ४, २७-३५ (-३ जुं कडवक) ४, ५०-६१ (=५मुं कडवक) वैविध्य खातर वपरायेला बीजा बे छंदोर्नु खरूप आ प्रमाणे छः (अ). १, ४५-५६ (= ४ थु कडवक, पंक्ति ६-१७) अने ३, ६७-७० (=५९ कडवक, पंक्ति ११-१४) ए खंडोमां वपरावेला छंदनी योजना ४+-in(पहेला गणमां जगण निषिद्ध) ए प्रकारनी छे. एटले के पद्धडिकापादना उत्तरार्धन बंधारण तेज आ छंदनी पंक्तिनुं माप. व य म्भू च्छ न्द स् (८, ९) अने छन्दोऽनुशासन (पा. ४६ अ, पं. १०-११) करिमकरभुजा नामे एक अष्टमात्रिक द्विपदी छंदन लक्षण बांधे छे. पण तेमां अंत्य चतुष्कलना खरूप बाबत कोई खास नियम नथी आपेलो. आथी ए छंद अने प उ म सिरि चरि उ नो उक्त छंद बंने एक होवानुं खातरीथी न कही शकाय, अप्रसिद्ध अपभ्रंश कृति चंद्रमुनिकृत कथा को शमां आ छंदनुं नाम दुहडहउ आपेलं छे. (आ). २, २३०-२३७ (२० मुं कडवक, पंक्ति ८-१५) ए खंडमां ५+५+५+--- ए मापनो मदनावतार के कामिनीमोहन छंद* वपरायो छे. एना * घणाखरा छंदःशास्त्रीओए आनी व्याख्या आपेली छे. वीगती चर्चा माटे जुओ संदेश रा स क (विघी जैन ग्रंथमाला, २२), पा. ५८-६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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