Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 37
________________ प्रा स ङ्गिक भूमिका अपभ्रंशनुं स्वरूप अने अर्वाचीन भाषाओ साथे तेनो संबंध . इ. स. १९१८ मा जर्मन पंडितवर्य हर्मान याकोबीए शास्त्रीय पद्धतिए संपादित करी प्रसिद्ध करेला अपभ्रंश काव्य भ वि स त क ह पछी ठीकठीक अपभ्रंश साहित्य प्रकाशमां आव्युं छे, अने तेना पौराणिक काव्य, महाकाव्य, चरितकाव्य, रासक वगेरे विविध प्रकारोनुं प्रतिनिधित्व धरावती केटलीक कृतिओ पण मुद्रित थइ चूकी छे. उपरांत अपभ्रंशना स्वरूप अने संबंधने लगतां जुदा जुदा अभ्यासीओनां मंतव्यो पण प्रसंगे प्रसंगे प्रकाशित थयेलां छे. आ सौने आधारे हवे आपणे अपभ्रंशने विशे केटलांक निश्चित खरूपनां विधानो करी शकीए तेम छीये. उत्तर भारतनी भाषाओनो विकास - इतिहास प्राचीन, मध्यकालीन अने अर्वाचीन एम जे त्रण भूमिकामां वहेंची शकाय छे, तेमां अपभ्रंशनुं स्थान मध्यकालीन ( अथवा तो प्राकृत ) अने अर्वाचीन भूमिकाने सांधनारी कडी जेवं छे ए अमुक दृष्टिए साचुं छे, पण तेनो अर्थ एवो नथी के जेटली जेटली प्राकृतो हती ते दरेकर्नु उत्तरकालीन स्वरूप ते अपभ्रंश. प्रसिद्ध साहित्य परथी स्पष्ट जोई शकाय छे के बीजी कोई पण अर्वाचीन भाषा करतां गुजराती, मारवाडी अने पश्चिमी हिंदी बोलीओ अपभ्रंशनी वधारे निकट छे. अपभ्रंशन ध्वनितंत्र के उच्चारण जोतां ते प्राकृतोना ध्वनितंत्रथी खास जुदुं नथी पडतुं. पण तेना विभक्तिना अने आख्यातिक प्रत्ययो प्राकृतोना ते ते प्रत्ययो करतां विकासक्रममा एक पगलु आगळ वधेला छे अने प्राचीन गुजराती के प्रजभाषाना प्रत्ययोना पूर्वज जेवा तेमने गणी शकाय तेम छे. आ उपरथी एम नथी धारी लेवान के प्राचीन गुजराती अने प्राचीन हिंदी सीधेसीधा अपभ्रंशनां ज रूपान्तरो छे. कारण, उपलब्ध साहित्य अने बीजा पुरावाओने आधारे अपभ्रंश ए साहित्यमा ज प्रयुक्त एक मिश्रभाषा होवानुं ठरे छे. इसवी पांचमी सदी आसपास हिंदना पश्चिम कांठा पर रहेती आभीर वगेरे जेवी जातिओनी नित्यना व्यवहारनी भाषा अज्ञात कारणोने लईने साहित्यमा प्रतिष्ठा पामवाने भाग्यशाळी बनी. पण आवी ग्रामीण गणाती बोली तेना स्वाभाविक स्वरूपमा ज शिष्टोथी अपनावाय एवं न बने, एटले ध्वनितंत्र के उच्चारण चालु प्राकृतोतुं राखी व्याकरणना प्रत्ययो देशभाषा(एटले के लोकबोली के बोलचालनी भाषा)माथी स्वीकारवामां आव्या. शब्दकोशमा पण नेवू टका जेटला शब्दो प्राकृतना ज रह्या. बाकीनो अंश ते देश्य. आ मिश्र खरूपनी भाषा साहित्यरचना-वधारे चोकसाइथी कहीये तो काव्यरचना- माटे वपरावा लागी. आ भाषा ते अपभ्रंश. ___ आनो अर्थ ए थयो के अपभ्रंशनो पायो बोलचालनी भाषानो रह्यो. आथी बोलथालनी भाषामां थये जतां परिवर्तनोनुं प्रतिबिंब अमुक अंशे अपभ्रंशमां पण पडे ज. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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