Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 34
________________ प्रास्ताविक वक्तव्य व नो म : भमन्तरि (४ / ११८) सोमणि (२ / २१ = सोवण (दे.) रतिगृह) इ० $१३. कंडिका ९११मां सूचवेल य श्रुति तथा व श्रुतिना संबंधे केटलीक वार य ने स्थाने व मूकवामां आवेल छे. दा.त. घोवंजणाई (१ / २१४) महोवहि (२/१७) सुहव - तणु (२/१०८) रम्मत्रेहिं (३/१९७) उल्लोवयं, उज्जोवयं (२ / २३३) इ० ९१४. म्वधारानो केटलेक स्थळे उमेरवामां आव्यो छे : दा. त. मसेसुई ( = असेसु इ. १/७२); मणेरपारि ( = अणोरपारि १ / ८९) इ० . १५. भू आदिमां होवा छतां पण प्रतिमां कोईकवार ह करवामां आव्यो छे. वच्चे भ आवेलो होवा छतां केटलीक वार ह् करवामां आव्यो नथी. दा.त. हंति ( = भ्रान्ति : १/३६ पाठान्तरमां द्रंति छे ); हंगुरि (= भंगुर १/१५०); हीरु (= भीरु १ / १६४) वगेरे. तेज प्रमाणे शब्दारं आवेला ब्नोय् करवामां आव्यो छे : दा.त. यंभचेरु (१/२२६); यंभणेहिं ( २ / २२७ पाठ तरीके मुद्रितमां आनी नोंध नथी लेवाणी ) यंधइ (४/१६६ मूळमां यंवइ वंचाय छे). कोईक वार आरंभना कूनो पण ग् थाय छे : दा. त. गलित ( = कलित २ / २१८). १८. केटलीक वार लखतां लखतां उच्चारणप्रमाद के केवळ लेखनप्रमादने लीघे उलटा-सुलटी अक्षरो = व्यत्ययात्मक लखाई जाय छे : दा. त. विहरि ( = विरहि १ / ६१ ) उपरनी विगतवार नोंधो मूळप्रतिना पाठनी ध्वनिविषयक विलक्षणताओना अभ्यासथी दृष्टिगोचर थाय छे. लिपिनी विलक्षणताओ प्रतिना लहिआनी लिपि सामान्यतया ठीक गणाय. परंतु तेने प्राचीन लिपिनी ओळख अने समज बहु निकृष्ट प्रकारनी होवाने कारणे जे प्रति उपरथी आ प्रतिनो उतारो कर्यो छे एमां अढळक अशुद्धिओनो उमेरो थयो छे. लहिओ पोते पण कोईक कोईक स्थळे पोतानी मूळ आदर्श प्रति वांची शक्यो नथी तेथी हाथप्रतिमां वच्चे वचे मात्र माथा लीटीओ ज दोरी अक्षरस्थान खाली राख्यां छे. लहिओ पोते पण भ्रामक लिपि लखनारो छे. एथी पण अशुद्धिओमां खूब ज उमेरो थयो छे. आथी आ हाथ प्रत उपरथी शुद्ध मुद्रण- आदर्श तैयार करवामां अमने अत्यंत श्रम पड्यो छे. हिओ एनी सामेनी मूळ प्रतिमांना प, य, घ, ने स्पष्ट समजी शक्यो नथी. एथी आ लखवामां तेणे घणो गोटाळो कर्यो छे. घ ने बदले प्प लख्याना दाखला मुद्रित पाठनी पादमधमां मालम पडी आवशे. च, व, धना पण आ प्रकारना ज गोटाळा लहिआए कर्या छे. आ रीते रु, ह, द इ, ट्ठ; उ, र, ड, य, प, ब, व, अने अ, ज, झ माटे पण आम बन्युं छे. एटले आ अक्षरो वाळा पाठोनी अर्थसंयोजना करीने मुद्रण - पाठ बेसाडवामां आ हाथप्रति खूब ज मुश्केलीओ उभी करी छे. स अने म पण लगभग सरखा लखेला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124