Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 23
________________ हु१२ पद्मश्रीचरित आव्यो हतो. प्रेमीजीने पछी तपास करतां ए ग्रंथोनी बीजी प्रतो मुंबइ तेम ज जयपुरना जैन भंडारोमाथी पण जडी आवी हती. पुष्पदन्तनी 'यशोधरचरित' अने 'नागकुमारचरित' नामनी वे अन्य अपभ्रंश कृतियोनो पण प्रेमीजीये पोताना लेखमा उल्लेख को हतो. २४ ए पछी डॉ० हीरालालजी जैनने विरारमा कारंजानो प्राचीन जैन भंडार अवलोकतां तेमां 'करकंडु चरिउ' 'सावयधम्मदोहा' आदि केटलाक अन्य अपभ्रंश ग्रन्थोनी प्रतो जोवामां आवी. तेथी तेमणे ए विषेनो एक विस्तृत लेख लखीने अलाहाबाद युनिवर्सिटी जर्नलमा छपावी प्रकट कर्यो. ए लेखमा तेमने प्राप्त थयेला अपभ्रंश ग्रंथो विषेनी सरस माहीती तेमणे निबद्ध करी. - २५ आ रीते १९१५ थी लई १९३० सुधीना १५ वर्षना गाळामां पुष्कळ परिमाणमां जैन अपभ्रंश साहित्यनी माहीती जाणवामां आवी अने तेने प्रकाशमा मुंकवानी तज्ज्ञ विद्वानोनी उत्सुकता वधवा लागी. ए उत्सुकताना परिणामे आपणे जोई शकिये छिये, के अत्यार सुधीमां ठीक ठीक प्रमाणमां अपभ्रंश साहित्य प्रकाशमां आव्युं छे अने तेना आधारे आपणने ए भाषाना इतिहास अने साहित्यना विकासक्रमनी घणीक स्पष्ट रूपरेखा दृष्टिगोचर थवा लागी छे. . डॉ० याकोबीना स्वर्गवास पछी जर्मनीमां अपभ्रंश भाषाना विशिष्ट अभ्यासी तरीके डॉ० आल्सडोफैनुं नाम अग्रभागे आवे तेम छे. तेमणे सौथी प्रथम 'कुमारपाल प्रतिबोध' अन्तर्गत अपभ्रंश अवतरणोनुं व्यवस्थित रीते अध्ययन करी तेने पुस्तकरूपमां हांबुर्ग युनिवर्सिटी तरफथी १९२८ मां प्रकट कर्यु. ते पछी पुष्पदन्तनुं 'हरिवंस पुराण' पण तेवी ज सरस रीते सुसंपादित करी प्रकट कर्यु. ए उपरान्त अपभ्रंश भाषाना स्वरूप विकासने लगता तेमणे अभ्यासपूर्ण केटलाक फुटकर निबन्धो पण प्रकट कर्या छे. आपणा देशमा अपभ्रंश ग्रन्थोना संपादको तरीके डॉ० हीरालालजी जैन, डॉ. आदिनाथ उपाध्ये, डॉ. परशुराम वैद्य, पं० लालचन्द्रजी गांधी आदिनां नामो अग्रणी रूपे आपवां योग्य छे. . [अपभ्रंश भाषा साहित्यमा गुजरातनुं विशिष्ट स्थान ] __ २६ आरीते अत्यार सुधीमां अपभ्रंश भाषानुं जे साहित्य प्रकट थवा पाम्यु छे से अपभ्रंशनी जन्मभूमि अने कर्मभूमि तरीके, भारतना कया भूभागने संबोधवो, तेनी चर्चा हजी विवादास्पद होई अहीं आपवी अप्रस्तुत छे. परंतु जे साहित्यिक सामग्री अत्यार सुधीमां उपलब्ध थई छे अने तेना पर्यालोचनथी जे परिज्ञान आपणने मळ्युं छे, ते ऊपरथी एटली वस्तु तो निश्चित थाय छे, के ए भाषानो विशिष्ट अने घनिष्ठ संबन्ध गुजरात - राजस्थान अने तेनी साथे संबद्ध (तन्निकटवर्ती) प्रदेश साथे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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