Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 24
________________ किंचित् प्रास्ताविक $ १३ रहेलो छे. उपलब्ध साहित्यना म्होटा भागनी रचना ए ज प्रदेशमा थएली छे. वर्तमान गुजराती अने राजस्थानी भाषानो प्रवाहसंबंध ए अपभ्रंश साधे जेवा अविच्छिन्नभावे सन्धाएलो चाल्यो आव्यो छे तेनां प्रमाणो ए भाषाना जूना साहित्य भंडारमाथी यथेष्टरूपे मळी आवे छे. छेक विक्रमना अग्यारमा सैकाना प्रारंभथी मांडी आज सुधीमां व्यतीत थएला एक हजार वर्ष जेटला सुदीर्घकालीन प्रवाह दरम्यान, गुजरात अने राजस्थानमां प्रचलित देशभाषानुं रूपान्तर केवा क्रमे तुं आव्युं छे अने केटकेटलां रूपान्तरोमांथी पसार थयां पछी विद्यमान स्वरूप ए देशभाषाने प्राप्त थयुं छे, तेनी रूपरेखा बतावनारी जेटली साहित्यिक संपत्ति गुजरातराजस्थानमा उपलब्ध थाय छे, तेटली भारतनी अन्य कोई भाषा माटे, अन्य कोई प्रान्तमां उपलब्ध नथी. गुजरात - राजस्थाननी ए साहित्यिक सामग्री द्वारा, विगत एक हजार वर्षनो आपणी भाषाना विकासक्रमनो इतिहास, आपणने सैका प्रतिसैकानी लांबी कालावधिनो ज नहिं परंतु संतान-प्रति-संतान जेवी (पेढी -दर-पेढी जेवी ) २०-२० वर्षनी टुंकी कालावधिनो ये प्राप्त थई शके तेम छे. २७ गुजरातनी प्राचीन भाषा-साहित्य विषयक समृद्धि जेम विपुल छे तेम एना ऐतिहासिक क्रमविकासनो ऊहापोह करवानी दृष्टिये, केटलाक अध्ययनशील योग्य विद्वानोए पण, ए माटे ठीक ठीक परिमाणमां परिश्रम सेव्यो छे; अने तेथी आपणने आपणी भाषाना क्रमविकासनुं केटलंक सप्रमाण ज्ञान, सारा सरखा परिमाणमां, प्राप्त थयुं छे एम कही शकाय ए विषयमां विशेष परिश्रम करनारा विदेशी विद्वानोमां इटालीना स्व० विद्वान् डॉ० टेसीटोरीनो प्रयास सौथी म्होटो छे, ए आपणे सारी पेठे जाणिये लिये. लंडन युनिवर्सिटी वाळा डॉ० टर्नर आजे ए विषयना सौथी अग्रणी युरोपीय बिद्वान् छे अने तेमनी साथे हवे श्री आल्फ्रेड मास्टरनुं नाम पण मूकी शकाय तेम छे. आपणा गुजराती विद्वानोनी जूनी पेढीमांना स्व० श्री नरसिंहराव दिवेटिया अने दि० ब० श्री केशवलाल ध्रुवनुं नाम चिरस्मरणीय रहेशे. गुजराती भाषाना आद्यन्त स्वरूपना ए बने विशेषज्ञोए, आपणने आपणी देशभाषाना इतिहास अने स्वरूपनुं घणुं मौलिक ज्ञान आप्युं छे. तेमणे बतावेला मार्गे ज आपणी वर्तमान पेढीना भाषाशास्त्र - जिज्ञासु जनो यथाशक्ति आगळ वधवानो प्रयत्न करी रह्या छे. पं० श्री बेचरदासजी, शास्त्री श्री केशवरामजी, प्रो० टी० एन० दवे, प्रो० कान्तिलाल व्यास, प्रो० मधुसूदन मोदी, प्रो० भोगीलाल सांडेसरा अने प्रो. हरिवल्लभ भायाणी आदि प्रमुख विद्वान् बन्धुओ, गुजराती भाषाशास्त्रज्ञ तरीके अध्ययन अन्वेषण-संशोधन-संपादन आदिनुं उत्साहजनक कार्य करी रह्या छे, अने आशा छे के भविष्यमां ए बधानां प्रयत्नोथी गुजराती भाषानी प्राचीन साहित्य समृद्धि जेम वधु प्रकाशमां आवशे तेम ते द्वारा भाषाना स्वरूप विकासनुं आपणने ay विशिष्ट ज्ञान प्राप्त थशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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