Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 26
________________ किंचित् प्रास्ताविक छे; छतां ज्यां सुधी कोई सारुं प्रत्यन्तर एजें उपलब्ध नहि थाय त्यां सुधी एनी ठीक शुद्ध वाचना थवी संभवित नथी. ३० कविधाहिलना विषयमां तेना समय अने स्थान आदि माटे अन्य कोई विशेष प्रमाण हजी ज्ञात थयुं नथी. प्रस्तुत कृतिना अन्त भागनी ९६-९७मी कडीमां एणे पोताना विषे जे उल्लेख करेलो छे तेऊपरथी एटलुं ज मात्र जणाय छे के ए प्राचीन गुजरातना श्रीमाल वंशीय संस्कृतमहाकवि पण्डित माघना वंशमां जन्मेलो छे. महाकवि माघनो समय सामान्य रीते विक्रमना ८ सैकानो पूर्वार्द्ध मनाय छे. धाहिल पोताने माघकविना वंशमां जन्मेलो जणावे छे- एटले के माघनी सन्ततिनी जे परंपरा चाली तेमां थयेला पार्श्व नामना कविना पुत्र तरीके पोताने ओळखावे छे. कवि पार्थ माघ पछी केटलामी पेढिये थयो तेनी कशी कल्पना नथी थती, परंतु ४ थी ५ मी पेढिये थयो हशे एम जो सामान्य कल्पना करवामां आवे, तो माघ पछी लगभग एक सैका पछीना समयमा अर्थात् विक्रमना ९ मा सैकाना मध्य भागमां तेनी हयाती संभवी शके. परंतु धाहिलनी भाषा अने वर्णन-शैलीनो विचार करता ते दशमा सैकामां थएलो होय तेम लागे छे. श्रीयुत मोदीनो पण ए ज अभिप्राय थाय छे. ए जोतां ते माघनी ७ मी पेढिये के पछी ८ मी ९ भी पेढिये थयो होय तेम आपणे कल्पिये तो ते कदाच संभवित थई शके. ___३१ महाकवि माघ श्रीमाल वंशीय गूर्जर वैश्य हतो. तेनी जन्मभूमि पुरातन पूर्जर देशनी राजधानी भिल्ल मा ल (जेनुं पाछळथी बीजुं नाम श्रीमाल पड्युं हतुं) इती. दिव्यदृष्टि धाहिल एनो वंशज होई तेणे जे पोतानी देशभाषामा प्रस्तुत रचना करी छे ते अर्थात् ज विशुद्ध प्राचीन गूर्जर अपभ्रंश' छे. ए गूर्जर अपभ्रंशनी ज्यां सुधी आपणने, एना करता वधारे जूनी एवी कोई अन्यकृति उपलब्ध हि याय, त्यां सुधी आपणे एने आपणी मातृभाषाना जननीपदनुं मान मेळवनारी पानी सौथी जूनी रचना तरीके गणी शकिये. तथास्तु. वेजया दशमी, सं. २००४ । ता. १२.-१०.-४८ रतीय विद्या भवन, मुंबई.) -जिन विजय * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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