Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 19
________________ ६८ पद्मश्रीचरित पाछा पोताना देशमां (जर्मनी) जवा रवाना थया, ते वखते मुंबइनी जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सनी ऑफिस तरफथी तेमनी विदायगिरिना मानमां एक समारंभ योजवामां आव्यो हतो, तेमां तेमणे पोताना प्रवास दरम्यान, जैन भंडारोमांथी जे आ रीते अपभ्रंश साहित्यनी वे अपूर्व कृतियो उपलब्ध थई ते माटे, जैन समाजने पोताना अभिनन्दन आप्या हता अने साथै ए पण आशा व्यक्त करी हती के जैन भंडारोमांथी भविष्यमा अपभ्रंश साहित्यनी आवी बीजी पण केटलीक रचनाओ मळी आववानो संभव छे अने ते माटे जैन विद्वानोने शोध करता रहेवानी तेमणे खास भलामण पण करी हती. १७ डॉ० याकोबी जेवा जर्मनी पहोंच्या के तरत ज युरोपमां, पेला प्रथम पृथ्वीव्यापी महायुद्धनो आरंभ थयो. च्यार साडाच्यार वर्ष सुधी जर्मनीमां सर्वत्र ए युद्धनी भयंकर ज्वाळाओ भभुकती रही. तेमां डॉ० याकोबीना एक के बे पुत्रो पण होमाई गया. छतां तेमणे हिंदुस्तानमांथी मळेली अपभ्रंशनी ए वे अपूर्व कृतियों संशोधन अने संपादन करवानुं कार्य शान्तमने चालु राख्युं. तेमणे प्रथम धनपालनी 'भविस्सयत्त कहा' तैयार करी. ऊपर सूचववामां आव्युं छे तेम, डॉ० याकोबीने ए कहानी एक ज प्रति मळी हती अने ते पण विशेष प्राचीन न होई बराबर शुद्ध न हती. तेमणे अथाक परिश्रम लई, यथाशक्य ए मूळ कथाना पाठने शुद्ध करी, तेम ज ते साथे, अपभ्रंश भाषाना इतिहास अने स्वरूपने आलेखती खूब ज विस्तृत प्रस्तावना, व्याकरणरचना, शब्दकोष इत्यादि योजी, सन् १९९८ मां म्युनिकनी 'रॉयल एकेडेमी' मार्फत छपवी प्रकट करावी. त्रणेक वर्ष पछी, (१९२१ मां ) तेमने मळेली अपभ्रंशनी बीजी रचना जे हरिभद्रसूरिकृत बृहत्परिमाण 'नेमिनाथचरित' नामे हती, तेमांथी तेमणे 'सणंकुमार चरिउ' नामनुं एक अन्तर्गत संक्षिप्त चरित तारवी काढी, तेने पण तेवी जरीते विस्तृत प्रस्तावना, व्याकरण आदि साथै सुसंपादित करी, त्यांथी ज प्रकट करावी. एते डॉ० याकोबीना आ प्रयत्ने अपभ्रंश साहित्यना अन्वेषण कार्यने विशिष्ट प्रेरणा आपी अने तेथी जर्मनी अने भारतना केटलाक विद्वानोने ए भाषा साहित्यना उद्धार कार्यमा उत्साहजनक अभिनव रस उत्पन्न थयो. १८ आपणा देशमां, ए कार्यमां सौथी प्रथम रस लेनार, मारा सद्गत विद्वान मित्र, भाई श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, एम्. ए. हता. तेमने १९१४ ना सप्टेंबरमां, वडोदराना स्वर्गवासी विद्याप्रेमी श्रीसयाजीराव गायकवाड तरफथी 'पाटणना भंडारमां केवां पुस्तको, इतिहास, भाषाशास्त्र तथा साहित्यनी दृष्टिये अगत्यनां छे ते अवलोकन करवानुं काम' सोपवामां आव्युं हतुं. तेमणे पोताना ए अवलोकन कार्य दरम्यान, पाटणना भंडारोमां जळवाएला संस्कृत प्राकृत आदि साहित्यना ग्रन्थोनी हस्तलिखित प्रतोमांथी ६५८ ताडपत्रनी अने लगभग १३००० जेटली कागळनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124