Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 20
________________ किंचित् प्रास्ताविक प्रतो तपासी हती. तेमांथी 'गुजराती भाषाना साहित्य अने इतिहास वास्ते घणां अगत्यना' एवां केटलांक पुस्तकोनी तेमणे खास नोंधो लीधी हती. ए नोंधोना आधारे तेमणे, सुरत खाते भराएली 'पांचमी गुजराती साहित्य परिषद्'मां वांचवा मादे "पाटणना भंडारो अने खास करीने तेमां रहेलुं अपभ्रंश तथा प्राचीन गुजराती साहित्य" ए नामनो एक विस्तृत निबन्ध लख्यो हतो, जे वडोदरामाथी प्रकट थता 'लाईब्रेरी मिसेलेनी' नामना पत्रमा छपायो हतो. ए निबन्धमां, पाटणना भंडारोमां तेमने दृष्टिगोचर थएली अपभ्रंश भापानी सन्देशरासक, वनस्वामिचरित्र, अंतरंगसंधि, चउरंगसंधि, सुलसाख्यान, चच्चरी, भावनासार, परमात्मप्रकाश, आराधना, मयणरेहासंधि, नमयासुन्दरिसंधि, तेमज भविस्सयत्तकहा, पउमसिरिचरिउ - इत्यादि नानी मोटी एवी कोई ७५-८० जेटली कृतियोनी नोंध करवामां आवी छे.. १९ डॉ० याकोबीने धनपालकविकृत अपभ्रंश 'भविस्सयत्त कहानी जे रचना मळी हती अने तेना विषे तेमणे जे आनन्दप्रदर्शक उद्गार, मुंबइमां उक्त जैन सभा आगळ, प्रकट कर्या हता ते श्री दलालनी जाणमां आव्या हता अने तेथी तेमनो रस पण ए साहित्यनी शोध तरफ विशेष वध्यो हतो; एटले तेमने पण पाटणमाथी ए धनपालनी 'कहानी एक जूनी प्रति ज्यारे दृष्टिगोचर थई त्यारे खूब ज आनन्द थयो हतो. . २० जर्मनी युरोप साथेनी लडाईमां भयंकर रीते संडोवायुं हतुं अने डॉ० याकोबीद्वारा धनपालनी 'भविस्सयत्त कहा' क्यारे प्रकाश पामे तेनी कशी कल्पना थतीन हती, तेथी श्री दलाले ए 'कहा' ने, तेमना संपादकत्वनीचे शरु करवामां आवेली 'गायकवाडस ओरिएन्टल सीरीझ' मां प्रकट करवानी योजना करी. दुर्भाग्ये ए मन्थनो मूळ भाग छपाईने तैयार थवा आव्यो तेटलामां, भाई श्री दलालनो १९१८ ना इन्फ्ल्युएन्जाए अकाले भोग लीधो. तेथी पछी पूनानी फर्ग्युसन कॉलेजना संस्कृताध्यापक स्व. डॉ० पाण्डुरंग गुणे द्वारा प्रस्तावना विगेरे साथे संपादित थई ए प्रन्थ प्रकट थयो. [+ धनपालनी ए कृति 'गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीझ' मा जे रीते प्रकट थई प्रकाशमा आवी के तेनी पाछळ थोडोक इतिहास छ जेमा मारो पण काईक संबन्ध रहेलो छे. भाई श्री दलाल साथेना मारा विशिष्ट स्नेहसंबन्धनी मधुर स्मृति, ए संबन्धने व्यक्त करवा मने अहिं खास प्रेरणा करे छे. भाई श्री दलाले 'पाटणना भंडारोमाना अपूर्व ग्रंथो' विषे उक्त नोंधो साथे पोतानो जे रीपोर्ट श्रीसयाजीराव गायकवाडने पेश को हतो,तेना अवलोकनथी ते विद्याप्रेमी अने संस्कृतिरसिक नृपतिने, ए ग्रंथोने यथाशक्य प्रकट करवानी भावना थई, अने तेथी तेमने माईसोर, त्रावणकोर विगेरे राज्यो तरफथी प्राचीन साहित्यने प्रकाशमा लावनारी जेवी ग्रन्थमाळाओ प्रकट थाय छे तेवी एक ग्रन्थमाळा पोताना (एट के वडोदरा) राज्य तरफथी पण प्रकट करवानी इच्छा उत्पन्न थई. वडोदरा सेंट्रल लाईब्रेरीनी (त्यारे नरोडाना विद्यमान 'ओरिएन्टल इन्स्टीट्यूट' नी योजना थई न हती) व्यवस्था नीचे, 'गायकवाडस् बोरिएन्टल सीरीझ' ए नामे प्रन्थमाळा प्रकट करवानी महाराजाए आज्ञा करी भने देना मुख्य संपादक तरीके श्री चिमनलाल दलालनी नियुक्ति करवामां आवी. पउम० च०६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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