Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

Previous | Next

Page 18
________________ किंचित् प्रास्ताविक Få et à Ausgewählte Erzählungen in Mahārāshtri' gani ecce मां लाइपत्सीग शहेर माथी प्रकट थयु हतुं. तेमणे आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्रकल्पसूत्र, कालकाचार्यकथानक, पउमचरियं अने समराइञ्चकहा जेवा प्राकृत जैन, वामयना अनेक प्राचीन अने प्रौढतम ग्रन्थोनुं संशोधन - संपादन करी जुदी जुदी संस्थाओ द्वारा तेमने प्रकट कराव्या हता. ए रीते डॉ० याकोबीनो प्राकृत वाङ्मय विषेर्नु परिशीलन घणुं ज प्रगाढ हतुं. १५ सन् १९१३-१४ मां तेओ हिंदुस्तानना पुनः प्रवासे आव्या हता अने गुजरात, राजपूताना विगेरेनां स्थळोना केटलाक जैन ग्रंथभंडारो जोवा प्रयास कों हतो. अमदाबादनो एक जैन भंडार जोतां, एक जैन साधु पासेथी, एक कथाग्रन्थनी बनी हस्तलिखित प्रति, तेमना जोवामां आवी, जे प्राकृत भाषानी कोई एक अज्ञात कृति तरीके तेमने बताववामां आवी हती. डॉ० याकोबी, ए कथानी बेचार पंक्तियो मांचतानी साथे ज बहु ज अजायबी साथे चमकी उठ्या अने उत्साह साथे बोली पड्या के 'अरे ! आ तो कोई अपभ्रंश भाषानी रचना लागे छे. ए पोथी जोईने डॉ० धाकोबीनी उत्सुकता एटली बधी वधी पडी के, उपाश्रयमांथी पोताना उतारे आवी परत ज एनी पोताना हाथे नकल करवी शरु करी, अने ते संपूर्ण आखी रात तेमा प्रसार करी. जे साधुना भंडारमाथी ए पोथी तेमने जोवा मळी हती ते साधु, घोडा समयमादे पण, ते पोथी तेमनी पासे राखवा देवा इच्छता होता, एटले डॉ० ग्राकोबीए लगातार अमुक दिवस बेसीने पोताना हाथे ज एनी केटलीक नकल करी सीधी अने पछी एक फोटोग्राफरने शोधी काढी तेनी पासेथी बाकीनां पानाओनी फोटोकॉपी करावी लीधी. ए ग्रन्थ, नाम 'भविस्सयत्त कहा' हतुं अने ते धनपाल नामना कविनो मनावेलो हतो. ए ग्रन्थनी प्राप्तिथी डॉ० याकोबीने जे अपूर्व आनन्द थयो हतो ते, प्रोत्साहक स्मरण, तेमणे जाते मारी आगळ, ज्यारे हुंजर्मनीना हांबुर्ग शहरमां, सम् १९२८ मां, तेमने मळ्यो यारे पण, खूब ज उत्साहथी कयुं हतुं. १६ ते पछी थोडाक दिवसे डॉ० याकोबी सौराष्ट्रनी मुसाफरिये निकळ्या, त्यारे राजकोटमा बीजा एक मुनि पासेथी तेमने तेवी ज भाषाना, एक बीजा कथाग्रन्थनी भाळ मळी हती. ए ग्रन्थy नाम 'नेमिनाथचरित' हतुं अने तेना कर्ता एक हरिभद्राचार्य हता जे चौलुक्यराजा कुमारपालना समयमा विद्यमान हता. ए चरितग्रंथ बहु ज म्होटो अने उच्चप्रकारनी साहित्यिक अने काव्यमय आलंकारिक अपभ्रंशमां, गुजरातना राष्ट्रीय अने सांस्कृतिक केन्द्रस्थान अणहिलपुरमा रचाएलो छे. ए ग्रन्थनी तो मूळ प्रति ज डॉ० याकोबी पोतानी साथे जर्मनी लई जई शक्या हता. आरीते डॉ० पाकोबी पोतानो ए हिंदुस्ताननो प्रवास पूरो करी (१९१४ ना उन्हाळामां) ज्यारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124