Book Title: Paumsiri Chariu Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith MumbaiPage 16
________________ किंचित् प्रास्ताविक १५ पछीना १५-२० वर्षना गाळामां ए विषय ऊपर लखनारा आपणा देशना डॉ. गुणे, १ डॉ. बेनर्जी - शास्त्री' विगेरे विद्वानोए पण ए ज धारणानो पुनरुच्चार कर्यो हतो. १९ अपभ्रंश भाषाना विशिष्ट अध्ययन अने अन्वेषणनी आवश्यकता तेम ज उपयोगिता, भारतीयभाषाभिज्ञ युरोपीय विद्वानोने प्रारंभथी ज सारी पेठे जणाई हती. आर्यपरिवारनी प्रवर्तमान भारतीय भाषाओना विकासक्रमनी, तुलनात्मक दृष्टिये पर्यालोचना करवा माटे, ए भाषाना इतिहास, साहित्य अने स्वरूपने समजवानी अनिवार्य जरूर लागी हती. वर्तमान देशभाषाओना प्रवाहनो उद्गम शोधवा जनाराओने जणायुं के विक्रमना ११ मा शतक पछी ज, ते ते भाषाओनी आरंभिक बुटक रूपरेखाओ नजरे पडवा लागे छे, अने ते पछीना ज उत्तरोत्तर काळमां धीमे धीमे तेमनो विकास थतो स्पष्ट देखाय छे. एथी पूर्वना समयमां तो, अपभ्रंश संज्ञाधारक ते भाषानी विशाळ धारा वहेती देखाय छे जेनुं विस्तृत व्याकरण हेमचन्द्राचार्यना उक्त प्राकृत व्याकरणमां निबद्ध थएलुं छे. एथी ए वस्तु स्वतः सिद्ध थपली जणाई के वर्तमान भारतीय भाषाओना प्रवाहनं उद्गम स्थान, अपभ्रंशनी धारामां अन्तर्निहित थपलं छे. एटले, ए माटे अपभ्रंश भाषानी साहित्यिक सामग्री शोधवा अने मेळववानी उत्कंठा, ए विषयना अभ्यासियोने थाय ए तद्दन स्वाभाविक हतुं. १२ अध्यापक पिशले (सन् १८७७ मां ) उक्त हेमचन्द्राचार्यना प्राकृत व्याक[णनी सुसंपादित आवृत्ति प्रकट कर्या पछी, पोतानुं समग्र लक्ष्य प्राकृतभाषानुं एक माणभूत अने परिपूर्ण व्याकरण लखवा तरफ दोर्यु. तेमना समय सुधीमां ज्ञात अने प्रकाशित थला विशाळ प्राकृत साहित्यना सेंकडों ग्रन्थो अने हजारो उल्लेखोनुं भाग दोहन करी, २५-३० वर्षना सुदीर्घ परिश्रम पछी, तेमणे ए व्याकरण पूर्ण कर्युं जे सन् १९०० मां जर्मनीना स्ट्रास्बुर्ग नगर माथी प्रकट थयुं. ए व्याकरणना उपोद्घातात्मक प्रकरणोमां मागधी, महाराष्ट्री, शौरसेनी आदि वधी प्राकृत भाषाओनुं स्वरूपालेखन करती वखते, क्रमप्राप्त अपभ्रंश भाषाना स्वरूपनुं तेणे संक्षिप्त परंतु सारभूत, सुन्दर निरूपण कर्यु. ए निरूपणमां, अपभ्रंश भाषाना ज्ञानमाटे जेटली साहित्यिक सामग्री तेमने उपलब्ध थई हती तेनी ट्रंक यादी पण तेमणे एक प्रकरणमा आपी छे. ए यादी प्रमाणे तेमनी पासे, हेमचन्द्रना प्राकृत व्याकरण अपभ्रंश प्रकरणमां उदाहरण तरीके उद्धृत करेलां पद्यो उपरान्त, सरस्वतीकण्ठाभरणमां मळेलां थोडांक अपभ्रंश उद्धरणो, विक्रमोर्वशीयमां उपलब्ध अपभ्रंनी संवादात्मक थोडीक गीतिकाओ, पिंगलछन्दः सूत्र अने प्राकृतपिंगलमां उद्धृत एलां थोडांक अपभ्रंश पद्यो, तेम ज 'ध्वन्यालोक,' 'वेतालपंचविंशति, ' 'शुकश १ जुओ, डॉ० गुणे लिखित, 'एन् इन्ट्रोडक्शन टु कम्पेरेटिव फाइलोलॉजी' पृ. १९६. २ डॉ. ए. पी. बेनर्जि-शास्त्री कृत 'इवोल्युशन ऑफ मागधी' पृ. २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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