Book Title: Paumsiri Chariu
Author(s): Dhahil Kavi, Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 12
________________ किंचित् प्रास्ताविक [अपभ्रंश भाषा साहित्यना प्रकाशन अंगेनो थोडोक इतिहास] दिव्यदृष्टि कवि धाहिल विरचित प्रस्तुत 'पउमसिरिचरिउ' जे सिंघी जैन ग्रन्थ मालाना २४ मा मणितरीके प्रकट करवामां आवे छे, अपभ्रंश भाषाना अभ्यासनी दृषिये एक महत्त्वनी कृति जणाशे. १ भारतवर्षनी आर्यवर्गनी देश्य भाषाओना विकासक्रमनो जेमने थोडो पण परिचय छे तेओ जाणे छे के 'अपभ्रंश' नामे ओळखाती जूनी भाषा, आपणा महान् राष्ट्रमांनी वर्तमान गुजराती, मराठी, हिन्दी, पंजाबी, सिंधी, बंगाली, आसामी, उडिया विगेरे, भारतना पश्चिम, उत्तर अने पूर्व भागोमां बोलाती प्रसिद्ध देशभाषाओनी, सगी जननी छे. गुजराती, मराठी, हिन्दी आदि देशभाषाओनी मातार्नु नाम, आपणा देशना पुरातन साहित्यकारो अने वैयाकरणोए 'अपभ्रंश' एवं आपेलुं छे, अने ए अपभ्रंशनी मातानुं नाम सर्वजनसुज्ञात एQ 'प्राकृत' छे. देश. विशेषना भेदोने लक्षीने, ए प्राचीन प्राकृतना मागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि अनेक भेदो, प्राचीन वैयाकरणोए करेला छे अने ते दरेकनी व्याकरणविषयक जे जे विशेषताओ छे ते प्राकृत भाषाना व्याकरणपन्थोमां निबद्ध करवामां आवी छे. २ प्राकृत भाषाना सौथी महान् वैयाकरण, गुजरातनी महती ज्ञानज्योतिजेवा जैन आचार्य हेमचन्द्रसूरि थया. तेमना बनावेला 'सिद्धहैमशब्दानुशासन' नामना वृहद्व्याकरण ग्रन्थना ८ मा अध्यायमां, प्राकृत भाषाओगें सविस्तर व्याकरण आलेखवामां आव्युं छे अने तेना छेल्ला भागमा अपभ्रंश भाषानुं पण एदलुं ज सुविस्तृत व्याकरण प्रथित करवामां आव्युं छे. ३ एम तो भरत, वररुचि, भामह, भोज, चण्ड, क्रमदीश्वर, त्रिविक्रम, सिंहराज, नरसिंह, लक्ष्मीधर, मार्कण्डेय, रामतर्कवागीश, शुभचन्द्र आदि शास्त्रकारोना प्राकृत व्याकरण ऊपर लखेला नाना म्होटा अनेक ग्रन्थो मळे छे, परन्तु ए सर्वमा हेमचन्द्राचार्यकृत जेवो सुविस्तृत अने सुग्रथित ग्रंथ एके य नथी. अने तेमां य अपभ्रंश भाषाना विषयमा तो हेमचन्द्राचार्यनी कृति एकमेव-अद्वितीय जेवी छे. अपभ्रंश भाषाना व्याकरणनी सोदाहरण अने सविस्तर सामग्री हेमचन्द्राचार्य सिवाय अन्य कोई ग्रन्थकारे नथी आपी. ४ भारतवर्षमा प्राकृत, अपभ्रंश अने देश्य भाषाना साहित्यनो प्रवाह ठेठथी अविरत चाल्यो आवे छे अने जे अभ्यासियो प्राकृतनो अभ्यास करे छे तेमने ते पउम• च०११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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