Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(आत्) अकार से परे (शतः) शत इस (अङ्गस्य) अग को (शीनद्यो:) शी और नदी-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (पा) विकल्प से (नुम्) नुम् आगम होता है।
उदा०-(शी) तुदन्ती कुले, तुदती कुले। दो दुःखदायी कुल । यान्ती कुले। याती कुले। दो जानेवाले कुल। करिष्यन्ती कुले, करिष्यती कुले। भविष्यत् में करनेवाले दो कुल। (नदी) तुदन्ती ब्राह्मणी, तुदती ब्राह्मणी । दुःखी ब्राह्मणी । यान्ती ब्राह्मणी, याती ब्राह्मणी । जानेवाली ब्राह्मणी । करिष्यन्ती ब्राह्मणी, करिष्यती ब्राह्मणी। भविष्यत् काल में करनेवाली ब्राह्मणी।
सिद्धि-(१) तुदन्ती । तु+शतृ । तुद्+श+अत् । तुद्+अत् । तुदत् ।। तुदत्+औ। तुदत्+शी। तुदनुमत्+ई। तुद्न्त्+ई। तुदन्ती।
यहाँ तद व्यथने तु०प०) धातु से लट: शतशानचा०(३४२११३४) से 'शत' प्रत्यय है। तुदादिभ्य: श:' (३१७७) से 'श' विकरण-प्रत्यय होता है। इस शत-प्रत्ययान्त तुदत्' शब्द से पूर्ववत् 'औ' प्रत्यय है। नपुंसकाच्च (७।१।१९) से 'औ' के स्थान में 'शी' आदेश होता है। इस सूत्र से 'शी' प्रत्यय परे होने पर 'श' के अकार से परे शत' प्रत्यय को नुम् आगम होता है। विकल्प-पक्ष में नुम्' आगम नहीं है-तुदती। ऐसे ही 'या प्रापणे (अदा०प०) धातु से-यान्ती, याती।
(२) करिष्यन्ती। यहां इकन करणे (तना०3०) धातु से लट शेषे च' (३।३।१३) से भविष्यत्-काल में लुट्' प्रत्यय है। लूट: सद् वा (३१३ ११४) से लुट्' के स्थान में शत-आदेश होता है। 'स्यतासी ललुटो:' (३।१।३३) से स्य' विकरण-प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) तुबन्ती, तुदती ब्राह्मणी आदि प्रयोगों में तुदत्' शब्द से स्त्रीत्व-विवक्षा में उगितश्च (४।१।६) से 'डीप्' प्रत्यय है। इसकी 'यू स्त्र्याख्यौ नदी' (१।४।३) से नदी-संज्ञा है। शेष कार्य पूर्ववत् है। नित्यं नुमागमः
(३६) शपश्यनोर्नित्यम्।८१। प०वि०-शप्-श्यनो: ६।२ नित्यम् ११ ।
स०-शप् च श्यन् च तौ शपश्यनौ, तयोः-शपश्यनो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-अगत्य, शतुः, आत्. नुम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-शपश्यनोरात् शतुरङ्गस्य शीनद्योर्नित्यं नुम् ।
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