Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
४५३
अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः (२) पूजायाम्’ पद की अनुवृत्ति में पुन: पूजायाम्' पद का ग्रहण सर्वानुदात्त-प्रतिषेध के लिये किया गया है। अनुवर्तमान पूजायाम्' पद निघात-प्रतिषेध के प्रतिषेध से सम्बद्ध था, अत: उसकी अनुवृत्ति नहीं की गई है। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(२३) अहो च।४०। प०वि०-अहो अव्ययपदम्, च अव्ययपदम् ।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातैः, युक्तम्, पूजायामिति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ पदाद् निपातेन अहो च युक्तं तिङ् पूजायां सर्वमनुदात्तं न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं निपातेनाऽहो इत्यनेन च युक्तं तिङन्तं पदं पूजायां विषये सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-अहो देवदत्त: पर्चति शोभनम्। अहो विष्णुमित्रः करोति शोभनम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (निपातेन) निपात-संज्ञक (अहो) अहो इस शब्द (च) भी (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (पूजायाम्) पूजा विषय में (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा०-अहो देवदत्त: पति शोभनम् । आश्चर्य है, देवदत्त शोभन विधि से पकाता है। अहो विष्णुमित्र: करोति शोभनम् । आश्चर्य है, विष्णुमित्र शोभन विधि से करता (बनाता) है।
सिद्धि-अहो देवदत्त: पचति शोभनम् । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, 'देवदत्त' पद से परवर्ती, 'अहो' निपात से संयुक्त पचति' पद पूजा विषय में इस सूत्र से सर्वानुदात्त नहीं होता है, अपितु पूर्ववत् स्वर होता है। ऐसे ही-अहो विष्णुमित्र: करोति शोभनम् । सर्वानुदात्तविकल्प:
(२४) शेषे विभाषा।४१॥ प०वि०-शेषे ७१ विभाषा ११ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org