Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) सकारस्य टवर्गेण-रामष्टीकते, देवष्टीकते। रामष्ठक्कुरः, देवष्ठक्कुरः।
(३) तवर्गस्य षकारेण-पेष्टा, पेष्टुम्, पेष्टव्यम् । स कृषीष्ट । त्वं कृषीष्ठा:।
(४) तवर्गस्य टवर्गेण-अग्निचिट्टीकते, सोमसुट्टीकते । अग्निचिट्ठक्कुरः, सोमसुट्ठक्कुरः। अग्निचिड्डयते, सोमसुड्डयते। अग्निचिड्ढौकते, सोमसुड्ढौकते। अग्निचिण्णकार:, सोमुसुण्णकार:।
(५) अट्टते। अड्डति।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) संधि-विषय में (स्तो:) सकार और तवर्ग के स्थान में (ष्टुना) षकार और टवर्ग के साथ योग होने पर (ष्टुः) षकार और टवर्ग आदेश होता है।
यहां सकार-टवर्ग का षकार-टवर्ग के साथ यथासंख्य योग अभीष्ट नहीं है। सकार का षकार और टवर्ग के साथ योग होने पर षकार आदेश होता है। तवर्ग का भी षकार और टवर्ग के साथ योग होने पर टवर्ग आदेश होता है। आदेश में तो यथासंख्य विधि अभीष्ट है। सकार के स्थान में षकार और तवर्ग के स्थान में टवर्ग आदेश होता है।
उदा०-(१) सकार का षकार के साथ योग में-वृक्षाषट्, । छ: वृक्ष हैं। प्लक्षाष्षट् । छ: पिलखण हैं।
(२) सकार का टवर्ग के साथ-रामष्टीकते। राम जाता है। देवष्टीकते। देव जाता है। रामष्ठक्कुरः । राम देवता-प्रतिमा रूप है। देवष्ठक्कुरः । देव प्रतिमा रूप है।
(३) तवर्ग का षकार के साथ-पेष्टा। पीसनेवाला। पेष्टुम् । पीसने के लिये। पेष्टव्यम् । पीसना चाहिये। स कृषीष्ट । वह करे। त्वं कृषीष्ठा: । तू कर।।
(४) तवर्ग का टवर्ग के साथ-अग्निचिट्टीकते। अग्निचित जाता है। सोमसुट्टीकते। सोमसुत् जाता है। अग्निचिट्ठक्कुरः। अग्निचित् ठाकुर है। सोमसुट्ठक्कुरः । सोमसुत् ठाकुर है। अग्निचिड्डयते। अग्निचित् विमान से उड़ता है। सोमसुड्डयते । सोमसुत् विमान से उड़ता है। अग्निचिड्ढौकते। अग्निचित् जाता है। सोमसुड्ढौकते । सोमसुत् जाता है, दुका करता है। अग्निचिण्णकार: । अग्निचित् कल्याणकारी है। सोमुसुण्णकारः । सोमसुत् कल्याणकारी है। णः शिवः।
(५) अट्टते। वह अतिक्रमण करता है। अड्डति। वह संयोजन करता है।
सिद्धि-(१) वृक्षाष्षट् । वृक्षास्+षट्, इस स्थिति में ससजुषो रुः' (८।२।६६) से सकार को 'रु' आदेश और खरवसानयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से खर्लक्षण
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