Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 759
________________ ७४२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां सकार-तवर्ग का शकार-चवर्ग के साथ यथासंख्य योग अभीष्ट नहीं है। सकार का शकार और चवर्ग के साथ योग होने पर शकार आदेश होता है। तवर्ग का भी शकार और चवर्ग के साथ योग होने पर चवर्ग आदेश होता है। आदेश में तो यथासंख्य विधि अभीष्ट है। सकार के स्थान में शकार और तवर्ग के स्थान में चवर्ग आदेश होता है। उदा०-(१) सकार का शकार के साथ योग में-रामस्+शेते रामशेते । राम सोता है। देवस्+शेते-देवश्शेते। देव सोता है। (२) शकार का चवर्ग के साथ-रामस्+चिनोति रामश्चिनोति । राम चुनता है। देवस+चिनोति देवश्चिनोति । देव चुनता है। रामस्+छादयति रामश्छादयति । राम आच्छादित करता है। देवस्+छादयति देवश्छादपति । देव आच्छादित करता है। (३) तवर्ग का शकार के साथ-अग्निचित्+शेते अगिचिच्छेते। अग्निचित् सोता है। सोमसुत्+शेते सोमसुच्छेते । सोमसुत् सोता है। (४) तवर्ग का चवर्ग के साथ-अग्निचित्+चिनोति अग्निचिच्चिनोति । अग्निचित् चुनता है। सोमसत+चिनोति-सोमसुच्चिनोति। सोमसुत् चुनता है। अग्निचित्+ छादयति=अग्निचिच्छादयति । अग्निचित् आच्छादित करता है। सोमसुत्+छादयति= सोमसुच्छादयति । सोमसुत् आच्छादित करता है। अग्निचित्+जयति-अग्निचिज्जयति। अग्निचित् जीतता है। सोमसुत+जयति सोमसुज्जयति । सोमसुत् जीतता है। अग्निचित+ झटिति अग्निचिज्झटिति । अग्निचित् जल्दी (आ} । सोमसुत्+झटिति सोमसुज्झटिति। सोमसुत् जल्दी {आ} । अग्निचित्+अमडणनम् अग्निचिञमङणनम् । अग्निचित् अमङणनम् {पढ़ता है} । सोमसुत्+अमङणनम् सोमसुञमङणनम् । सोमसुत् ञमङणनम् (पढ़ता है} । (५) मस्जि-मज्जति । शुद्ध होता है, स्नान करता है। भ्रस्जि-भृज्जति । पकाता है। व्रश्चि-वृश्चति । काटता है। यजि-यज्ञः । देवपूजा, संगतिकरण और दान करना। याचि-याच्ञा । मांगना। सिद्धि-(१) रामश्शेते। यहां 'राम' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। ससजुषो रुः' (८।२।६६) से सकार को 'रु' आदेश, खरवसानयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५) से रेफ को खरीक्षण विसर्जनीय आदेश और विसर्जनीयस्य सः' (८।३।३४) से विसर्जनीय को सकार आदेश है। इस सूत्र से सकार के स्थान में शकार के साथ योग में शकार आदेश होता है। ऐसे ही-देवश्शेते । चवर्ग के योग में-रामश्चिनोति. देवश्चिनोति। रामश्छादयति, देवश्छादयति । (२) अग्निचिच्छेते। अग्निचित्+शेते। अग्निचित्+छेते। अग्निचिच्+छेते। अग्निचिच्छेते। यहां शश्छोऽटि' (८।४।६३) से शकार को छकार आदेश होकर इस सूत्र से तकार को चवर्ग चकार आदेश होता है। ऐसे ही-सोमसुच्छेते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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