Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 760
________________ अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ७४३ (३) अग्निचिज्जयति। यहां झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से तकार को जश् दकार होकर इस सूत्र से दकार को चवर्ग जकार आदेश होता है। (४) अनिचिञमङणनम् । यहां 'झलां जशोऽन्ते' (८।२।३९) से तकार को दकार आदेश होकर इस सूत्र से दकार को चवर्ग अनुनासिक अकार आदेश होता है। (५) मज्जति । यहां टुमस्जो शुद्धौ' (तु०प०) धातु से लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। मस्+अ+ति, इस स्थिति में झलां जश् झशि (८।४।५२) से सकार को जश् दकार और इस सूत्र से दकार को चवर्ग जकार आदेश होता है। ऐसे ही 'भ्रस्ज पाके' (तु०3०) धातु से-भज्जति। अहिज्यावयि०' (६।१।१६) से रेफ को ऋ-सम्प्रसारण है। ओव्रश्चू छेदने' (तु०प०) धातु से-व्रश्चति । . (६) यज्ञः । यहां यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु च' (भ्वा०३०) धातु से यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्षो नङ् (३।३।९०) से नङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से प्रत्यय के नकार को चवर्ग अकार आदेश होता है-यज्++सु-यज्ञ: । 'टुयाच याच्ञायाम्' (भ्वा०3०) धातु से-यात्रा। 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में टाप्' प्रत्यय है। यात्रा स्त्रियाम् (लिङगानुशासन २।६) से यात्रा' शब्द स्त्रीलिङ्ग है। षकारटवर्गौ (२) ष्टुना ष्टुः ।४०। प०वि०-ष्टुना ३।१ ष्टु: ११ । स०-षश्च टुश्च एतयो: समाहार: ष्टुः, तेन-ष्टुना (समाहारद्वन्द्वः)। षश्च टुश्च एतयो: समाहार: ष्टुः (समाहारद्वन्द्व:)। अनु०-संहितायाम्, स्तोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां स्तो: ष्टुना ष्टुः । अर्थ:-संहितायां विषये सकारतवर्गयो: स्थाने, षकारटवर्गाभ्यां सह योगे सति, षकारटवर्गावादेशौ भवतः । ‘स्तो: ष्टुना' इत्यत्र यथासंख्यं योगो नेष्यते। सकारस्य षकारेण टवर्गेण च सह योगे सति षकारादेशो भवति। तवर्गस्यापि षकारेण टवर्गेण च सह योगे सति टवगदिशो भवति। आदेशे तु यथासंख्यं विधिरिष्यते-सकारस्य षकारः, तवर्गस्य च टवर्ग आदेशो भवति। उदा०-(१) सकारस्य षकारेण सह योगे-वृक्षाष्षट्, प्लक्षाष्षट् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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