Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आयभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अभ्यासे) अभ्यास में विद्यमान (झलाम्) झल् वर्गों के स्थान में (जश्) जश् (च) और (चर्) चर् आदेश होता है।
उदा०-(चर्) स चिखनिषति । वह खोदना चाहता है। स चिच्छित्सति । वह काटना चाहता है। स टिठक्कुरयिषति। वह देवता की प्रतिमा बनाना चाहता है। स तिष्ठासति । वह ठहरना चाहता है। स पिफलिषति। (जश) स बुभूषति । वह सत्ता में रहना चाहता है। स जिघत्सति। वह हिंसा करना चाहता है। स डुढौकिषते। वह गति (टुकाव) करना चाहता है।
सिद्धि-(१) चिखनिषति । यहां 'खनु अवदारणे' (भ्वा०प०) धातु से 'धातो: कर्मण: समानकर्तकादिच्छायां वा' (३।१७) से सन्' प्रत्यय है। 'सन्यडोः' (६।१।९) से खन्' धातु को द्वित्व होता है। प्रथम कुहोश्चुः' (७।४।६२) से कवर्ग खकार को चवर्ग छकार आदेश होकर इस सूत्र से खन्' धातु के अभ्यास छकार को चर् चकार आदेश होता है।
(२) चिछित्सति । यहां छिदिर् द्वैधीकरणे (रधा०प०) धातु से पूर्ववत् सन् प्रत्यय और छिद्' धातु को द्वित्व है। इस सूत्र से छिद्' धातु के अभ्यास छकार को चर् चकार आदेश होता है।
(३) टिठक्कुरयिषति । यहां प्रथम ठक्कुर' शब्द से वा०- 'तत्करोति तदाचष्टे०' (३।१।२६) से करोति-अर्थ में णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त ठक्कुरि' धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और धातु को द्वित्व है। इस सूत्र से ठक्कुरि' धातु के अभ्यास ठकार को चर् टकार आदेश होता है।
(४) तिष्ठासति । यहां छा गतिनिवृत्तौ (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और स्था' धातु को द्वित्व है। शीर्वा: खयः' (७।४।६१) से स्था' अभ्यास का खय् 'थ' शेष रहता है। इस सूत्र से अभ्यास थकार को चर् तकार आदेश होता है।
(५) पिफलिपति । यहां फल निष्पत्तौ (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और फल धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से अभ्यास के फकार को चर् पकार आदेश होता है।
(६) बुभूषति । यहां 'भू सत्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से अभ्यास के भकार को जश् बकार आदेश होता है।
(७) जिघत्सति। यहां हन हिंसागत्यो:' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और धातु को द्वित्व होता है। प्रथम कुहोश्चुः' (७।४।६२) से हन्' धातु के अभ्यास हकार को चवर्ग झकार होकर इस सूत्र से झकार को जश् जकार आदेश होता है।
(८) डुढौकिषते । यहां ढौकृ गतौ' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय और फल धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से धातु के अभ्यास ढकार को जश् डकार आदेश होता है।
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