Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 743
________________ ७२६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् णकारादेशः (२५) छन्दस्य॒दवग्रहात्।२५ । प०वि०-छन्दसि ७१ ऋत्-अवग्रहात् ५।१। स०-ऋच्चासावग्रहश्चेति ऋदवग्रह:, तस्मात्-ऋदवग्रहात् (कर्मधारयतत्पुरुष:)। अवगृह्यते विच्छिद्य पठ्यते इति अवग्रहः । अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, ण इति चानुवर्तते। 'पूर्वपदात् संज्ञायामग:' (८।४।३) इत्यस्माद् मण्डूकोत्प्लुत्या 'पूर्वपदात्' इत्यनुवर्तनीयम्। अन्वय:-संहितायां छन्दसि च ऋदवग्रहात् पूर्वपदाद् नो णः । अर्थ:-संहितायां छन्दसि च विषये ऋदवग्रहात् पूर्वपदाद् परस्य नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति । उदा०-नृमणा: (यजु० १२ १२०)। अवग्रह:-नृ मना इति नृऽमना:। पितृयाणम् । अवग्रह:-पितृयानमिति पितृऽयानम्। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि और (छन्दसि) वेदविषय में (ऋदवग्रहात्) ऋकारान्त अवगृह्यमाण (पूर्वपदात्) पूर्वपद से परवर्ती (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है (अदेशे) यदि वहां देश का कथन न हो। उदा०-नृमणा: (यजु० १२।२०)। अवग्रह-न मना इति नामनाः । नर-प्रजा में मन रखनेवाला श्रेष्ठ राजा। पितृयाणम् । अवग्रह-पितृयानमिति पितृध्यानम् । पितरजनों का मार्ग। सिद्धि-नृमणा: । यहां नृ और मनस् शब्दों का बहुव्रीहि समास है। नृषु-प्रजाजनेषु मनो यस्य सः-नमणाः । इस सूत्र से पदपाठ में अवगृह्यमाण ऋकरान्त नृ' पूर्वपद से परवर्ती मनस्' शब्द के नकार को णकार आदेश होता है। ऐसे ही-पितृयाणम् । ___यहां अवग्रह का अभिप्राय यह है कि जिस पूर्वपद में ऋकार वर्ण पर, अवग्रह (पदच्छेद) किया जाता है उस ऋकारान्त पूर्वपद से उत्तरवर्ती पद के नकार को णकार आदेश होता है, अवग्रह अवस्था में नहीं। णकारादेशः __(२६) नश्च धातुस्थोरुषुभ्यः ।२६ । प०वि०-नस् १।१ (षष्ठ्य र्थे), च अव्ययपदम्, धातुस्थ-उरुषुभ्य: ५।३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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