Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

View full book text
Previous | Next

Page 751
________________ ७३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) प्रणिंसणम् । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक 'णिसि चुम्बने (अदा०आ०) धातु से 'ल्युट् च' (३।३।११५) से भाव अर्थ में 'ल्युट्' प्रत्यय है। 'इदितो नुम् धातो:' (७।१।५८) से धातु को नुम्' आगम है। युवोरनाकौ' (७।१।१) से यु' को 'अन' आदेश है। इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती, धातु के नकार को णकार आदेश होता है। विकल्प पक्ष में णकार आदेश नहीं है-प्रनिसनम्। (२) प्रणिक्षणम्। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक णिक्ष चुम्बने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । विकल्प पक्ष में-प्रनिक्षणम् । (३) प्रणिन्दनम् । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक णिदि कुत्सायाम्' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । विकल्प पक्ष में-प्रनिन्दनम् । णकारादेशप्रतिषेधः (३३) न भाभूपूकमिगमिप्यायीवेपाम्।३३। प०वि०-न अव्ययपदम्, भा-भू-पू-कमि-गमि-प्यायी-वेपाम् ६।३ । स०-भाश्च भूश्च पूश्च कमिश्च गमिश्च प्यायीश्च वेप् च ते भाभूपूकमिगमिप्यायीवेप:, तेषाम्-भाभूपूकमिगमिप्यायीवेपाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-संहितायाम्, रात्, न:, णः, उपसर्गात्, कृति, अच इति चानुवर्तते। ___ अन्वय:-संहितायाम् उपसर्गस्य रेफाद् भाभूपूकमिगमिप्यायीवेपिभ्योऽच: कृति नो णो न। अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफात् परेभ्यो भाभूपूकमिगमिप्यायीवेपिभ्यो धातुभ्यो विहितस्याच उत्तरस्य कृत्प्रत्ययस्य नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति । उदाहरणम् धातुः| उपसर्ग: । शब्दरूपम् भाषार्थ: १. भा | प्र । प्रभानम अति चमकना। परिभानम् सर्वत: चमकना। प्रभवनम् उत्पन्न होना। परिभवनम् । सर्वत्र होना। si Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802