Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
७३७ (२) सर्पिष्पानम् । यहां यजुष् और पान शब्दों का कर्तृकरणे कृता बहुलम् (२।१।३१) तृतीयातत्पुरुष समास है। वा भावकरणयोः' (८।४।१०) से करणलक्षण में णकार आदेश प्राप्त था। अत: इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है।
विशेष: यहां पदेऽन्त इति पदान्त:' ऐसे सप्तमी तत्पुरुष करने से सर्पिष्केण, सुयजुष्केण आदि प्रयोगों में णकार आदेश का प्रतिषेध नहीं होता है। यहां शेषाद्विभाषा' (५।४।१५४) से समासान्त 'कप्' प्रत्यय है। षष्ठीसमास से सर्पिष्केण आदि में णत्व-प्रतिषेध प्राप्त नहीं होता है। णकारादेशप्रतिषेधः
(३५) नशेः षान्तस्य ।३५। प०वि०-नशे: ६१ षान्तस्य ६।१। स०-षोऽन्ते यस्य स षान्त:, तस्य-षान्तस्य (बहुव्रीहिः)। अनु०-संहितायाम्, रात्, न:, णः, उपसर्गात्, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायाम् उपसर्गस्य रात् षान्तस्य नशे! णो न।
अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफात् परस्य, षकारान्तस्य नशेर्धातोर्नकारस्य स्थाने णकारादेशो न भवति ।
उदा०-प्रनष्टः, परिनष्टः।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (उपसर्गस्य) उपसर्ग के (रात्) रेफ से परवर्ती (षान्तस्य) षकारान्त (नशे) नश् धातु के (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश (न) नहीं होता है।
उदा०-प्रनष्टः । अति नष्ट हुआ। परिनष्टः । सर्वत: नष्ट हुआ।
सिद्धि-प्रनष्टः। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक ‘णश अदर्शने (दि०प०) धातु से 'क्त' प्रत्यय है। 'मस्जिनझेलि' (७।१।६०) से नुम् आगम, वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से शकार को षकार, 'अनिदितां हल उपधाया: डिति (६।४।२४) से अनुनासिक का लोप और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) से तकार को टवर्ग टकार आदेश है। इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती, षकारान्त नश् (नष्) धातु के नकार को णकार आदेश का प्रतिषेध होता है। परि-उपसर्ग में-परिनष्टः ।
यहां उपसर्गादसमासेऽपि' (८।४।१४) से णकार आदेश प्राप्त था। अत: इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है।
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