Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 742
________________ अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ७२५ सिद्धि-(१) अन्तर्हण्यते। यहां अन्तर्-पूर्वक हन्' धातु से कर्मवाच्य में लट्' प्रत्यय है। लकार के स्थान में आत्मनेपद त' आदेश है। 'भावकर्मणो:' (१।३।१३) से आत्मनेपद है। 'सार्वधातुके यक्' (३।१।६७) से यक् आगम है। इस सूत्र से अन्तर् शब्द के रेफ से परवर्ती तथा अकारपूर्वी हन्' धातु के नकार को अदेश अर्थ में णकार आदेश होता है। (२) अन्तर्हणनम् । यहां अन्तर्-उपपद हन्' धातु से ल्युट् च' (३।३।११५) से भाव अर्थ में 'ल्युट' प्रत्यय है। युवोरनाकौ (७।११) से 'यु' को 'अन' आदेश है। 'अन्तरपरिग्रहे' (१।४।६५) से अन्तर् शब्द की गति-संज्ञा होकर कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से गतितत्पुरुष समास है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। देश अभिधेय में 'अन्तर्घनो देशे' (३।३।७८) से 'अन्तर्घन:' प्रयोग होता है। णकारादेशः (२४) अयनं च।२४। प०वि०-अयनम् १।१ (षष्ठ्य र्थे), च अव्ययपदम्। अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, अन्त:, अदेशे इति चानुवर्तते। अन्वयः-संहितायाम् अन्तर्-राद् अयनं च नो णः, अदेशे। अर्थ:-संहितायां विषयेऽन्त:शब्दस्य रेफात् परस्य अयनमित्येतस्य च नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति, अदेशेऽभिधेये। उदा०-(अयनम्) अन्त:-अन्तरयणं वर्तते। अन्तरयनं शोभनम् । आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अन्तः) अन्तर् शब्द के (रात्) रेफ से परवर्ती (अयनम्) अयन शब्द के (च) भी (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है (अदेशे) यदि वहां देश का कथन न हो। उदा०-(अयनम्) अन्त:-अन्तरयणं वर्तते । मध्य-मार्ग है। अन्तरयनं शोभनम् । मध्य-मार्ग अच्छा है। __ सिद्धि-अन्तरयणम् । यहां अन्तर् और अयन शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से गतितत्पुरुष समास है। 'अन्तरपरिग्रहे' (१।४।६५) से अन्तर् शब्द की गति-संज्ञा है। इस सूत्र से अन्तर् शब्द के रेफ से परवर्ती अयन शब्द के नकार को णकार आदेश होता है। यहां कृत्यचः' (८।४।२८) से णकार आदेश सिद्ध है। देश के प्रतिषेध के लिये यह कथन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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