Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
४७३
४७३ सर्वानुदात्तप्रतिषेधः
(४४) अहेति विनियोगे च।६१। प०वि०- अह अव्ययपदम्, इति अव्ययपदम्, विनियोगे ७।१। च अव्ययपदम्।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, योगे, प्रथमा, क्षियायामिति चानुवर्तते।
अन्वयः-अपादादौ पदाद् अहेति योगे विनियोगे क्षियायां च प्रथमा तिङ् सर्वानुदात्ता न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमाना पदात् पराऽहेत्यनेन योगे सति विनियोगे क्षियायां च गम्यमानायां प्रथमा तिड्विभक्ति: सर्वानुदात्ता न भवति। नानाप्रयोजनो योगो विनियोग इति कथ्यते।
उदा०-(विनियोग:) त्वमह ग्रामं गच्छ३ त्वमहारण्यं गच्छ। (क्षिया) स स्वयमह रथेन याति३ उपाध्यायं पदातिं गमयति । स स्वयमहौदनं भुङ्क्ते३ उपाध्यायं सक्तून् पाययति।
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (अह इति) अह इस शब्द का (योगे) संयोग होने पर (क्षियायाम्) निन्दा अर्थ की अभिव्यक्ति में (प्रथमा) प्रथमा (तिङ्) तिङ्-विभक्ति (सर्वानुदात्ता) सर्वानुदात्त (न) नहीं होती है।
उदा०-(विनियोग) त्वमह ग्रामं गच्छ३ त्वमहारण्यं गच्छ । तू तो गांव जा और तू वन में जा। (क्षिया) स स्वयमह रथेन याति३ उपाध्यायं पदातिं गमयति । वह स्वयं तो रथ से जाता है और उपाध्याय जी को पैदल भेजता है। स स्वयमहौदनं भुङ्क्ते३ उपाध्यायं सक्तून् पाययति । वह स्वयं तो चावल खाता है और उपाध्याय जी को सत्तू पिलाता है।
सिद्धि-त्वमह ग्रामं गच्छ३ त्वमहारण्यं गच्छ। यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, 'ग्राम' पद से परवर्ती, अह-शब्द के संयोग में तथा विनियोग अर्थ की अभिव्यक्ति में प्रथमा तिङन्त गच्छ' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। अत: पूर्वोक्त यधाप्राप्त स्वर होता है। ऐसे ही क्षिया अर्थ में-स स्वयमह रथेन याति३ उपाध्यायं पदातिं गमयति, इत्यादि । यहां याति और भुङ्क्ते पदों को पूर्ववत् (८।२।१०४) से स्वरित प्लुत होता है।
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