Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् रु-आदेशविकल्प:
(१०) दश्च ७५। प०वि०-द: ६।१ च अव्ययपदम्। अनु०-पदस्य, सिपि, धातो:, रु:, वा, द इति चानुवर्तते। अन्वयः-द: पदस्य धातोश्च सिपि वा रुः।
अर्थ:-दकारान्तस्य पदस्य धातोश्च सिपि प्रत्यये परतो विकल्पेन रुरादेशो भवति, पक्षे च दकारादेशो भवति।
उदा०-(भिद्) अभिनस्त्वम्, अभिनत् त्वम्। (छिद्) अच्छिनस्त्वम्, अच्छिनत् त्वम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(द:) दकारान्त (पदस्य) पद के (धातो:) धातु को (च) भी (सिपि) सिप् प्रत्यय परे होने पर (वा) विकल्प से (रु:) रु आदेश होता है। पक्ष में दकारादेश होता है।
उदा०-(भिद्) अभिनस्त्वम्, अभिनत् त्वम् । तूने भेदन किया, फाड़ा। (छिद्) अच्छिनस्त्वम्, अच्छिनत् त्वम् । तूने छेदन किया, काटा।
सिद्धि-अभिन: । यहां भिदिर विदारणे (रधा०प०) धातु से पूर्ववत् लङ्' प्रत्यय है और लकार के स्थान में 'सिप' आदेश है। रुधादिभ्यः श्नम् (३।१।७८) से 'श्नम्' विकरण-प्रत्यय होता है। हल्याब्भ्यो दीर्घात०' (६।१।६७) से अपृक्त स् (सिप) प्रत्यय का लोप होता है। इस सूत्र से भिद्' धातु के दकार को रु आदेश होता है। खरवसानयोविसर्जनीयः' (८।३।१५) से 'ह' के रेफ को अवसानलक्षण विसर्जनीय आदेश है। अभिनस्त्वम्-यहां विसर्जनीयस्य सः' (८।३।३४) से विसर्जनीय को सकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में दकरादेश है-अभिनत त्वम्। 'खरि च' (८।४।५५) से दकार को चर् तकारादेश है। 'छिदिर् द्वैधीकरणे' (रुधा०प०) धातु से-अच्छिनस्त्वम्, अच्छिनत् त्वम्।
।। इति रु-आदेशप्रकरणम्।।
आदेशप्रकरणम् दीर्घादेश:
(१) रोरुपधाया दीर्घ इकः ७६। प०वि०-र्वो: ६।२ उपधाया: ६१ दीर्घ: ११ इक: ६।१। स०-रश्च वश्च तौ र्वी, तयो:-h: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
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