Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् । अन्वयः-संहितायामत्र रुविधावनुनासिकात् परोऽनुस्वारः ।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽत्र रुविधावनुनासिकात् परोऽन्यो यो वर्णो यस्यानुनासिको न विहितस्तस्यानुस्वारादेशो भवति, इत्यधिकारोऽयम्।
_ 'अत्रानुनासिक: पूर्वस्य तु वा' (८।३।२) इत्यनेन विकल्पेनानुनासिकादेशो विहितः । यस्मिन् पक्षेऽनुनसिकादेशो न भवति, तस्मिन् पक्षेऽनेन सूत्रेणाऽनुस्वारादेशो विधीयते।
यथा वक्ष्यति-‘सम: सुटि' (८।३।५) इति । संस्कर्ता, संस्कर्तुम्, संस्कर्तव्यम्। 'पुम: खय्यम्परें (८।३।६) इति । पुंस्कामा। 'नश्छव्यप्रशान्' (८।३।७) इति । भवांश्चिनोति।।
___ आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अत्र) इस रुविधि में (अनुनासिकात्) अनुनासिक आदेश से (पर:) अन्य जो वर्ण है जिसे अनुनासिक नहीं किया गया है उसको (अनुस्वारः) अनुस्वार आदेश होता है, यह अधिकार सूत्र है।
'अत्रानुनासिकः पूर्वस्य त वा' (८।३।२) इस सूत्र से विकल्प से अनुनासिक आदेश विधान किया गया है। जिस पक्ष में अनुनासिक आदेश नहीं होता है, उस पक्ष में इस सूत्र से अनुस्वार आदेश का विधान किया गया है।
जैसे कि पाणिनि मुनि कहेंगे-सम: सुटि' (८।३।५) अर्थात् 'सुट्' परे होने पर सम्' को 'ह' आदेश होता है। संस्कर्ता। संस्कार करनेवाला। संस्कर्तम् । संस्कार करने के लिये। संस्कर्तव्यम् । संस्कार करना चाहिये। पुम: खय्यम्परे' (८।३।६) अर्थात् अम्परक खय् वर्ण परे होने पर 'पुम्' को 'रु' आदेश होता है। पुंस्कामा । पुरुष की कामना करनेवाली नारी। नश्छव्यप्रशान्' (८।३।७) प्रशान् से भिन्न नकारान्त शब्द को छव् वर्ण परे होने पर 'रु' आदेश होता है। भवांश्चिनोति । आप चुनते हैं।
सिद्धि-संस्कर्ता आदि पदों की सिद्धि आगे यथास्थान लिखी जायेगी। रु-आदेश:
(५) समः सुटि।५। पं०वि०-सम: ६ १ सुटि ७१ । अनु०-पदस्य, संहितायाम्, रुरिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां सम: पदस्य सुटि रु: । अर्थ:-संहितायां विषये सम: पदस्य सुटि परतो रुरादेशो भवति ।
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