Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः मूर्धन्यादेशविकल्प:
(२२) स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः ७६। प०वि०-स्फरति-स्फुलत्यो: ६।२ निर्-नि-विभ्य: ५।३।
स०-स्फुरतिश्च स्फुलतिश्च तौ स्फुरतिस्फुलती, तयोः-स्फुरतिस्फुलत्यो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । निर् च निश्च विश्च ते निर्निवय:, तेभ्य: निर्निविभ्य: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
____ अनु०-संहितायाम्, स:, अपदान्तस्य, मूर्धन्य:, इणः, उपसर्गात्, वा इति चानुवर्तते।
अन्वयः-संहितायाम् इण्भ्यो निर्निविभ्य उपसर्गेभ्य: स्फुरतिस्फुलत्योरपदान्तस्य सो वा मूर्धन्यः ।
अर्थ:-संहितायां विषये इणन्तेभ्य: निर्निविभ्य उपसर्गेभ्य: परयो: स्फुरतिस्फुलत्योरपदान्तस्य सकारस्य स्थाने, विकल्पेन मूर्धन्यादेशो भवति ।
___ उदा०-(स्फुर) निर्-निष्ष्फुरति, निस्स्फुरति । नि-निष्फुरति, निस्फुरति। वि-विष्फुरति, विस्फुरति। (स्फुल) निर्-निष्ष्फुलति, निस्स्फुलति । नि-निष्फुलति, निस्फुलति। वि-विष्फुलति, विस्फुलति। '
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (इण्भ्यः) इणन्त (निर्निविभ्यः) निर्, नि, वि इन (उपसर्गेभ्यः) उपसर्गों से परवर्ती (स्फुरतिस्फुलत्योः) स्फुर, स्फुल इन धातुओं के (अपदान्तस्य) अपदान्त (स:) सकार के स्थान में (वा) विकल्प से (मूर्धन्य:) मूर्धन्य आदेश होता है।
उदा०-(स्फुर) निर्-निष्फुरति, निस्स्फुरति। निश्चय से सूझता है। निनिष्फुरति, निस्फुरति । निम्नत: सूझता है। वि-विष्फुरति, विस्फुरति । विशेषत: सूझता है। (स्फुल) निर्-निष्फुलति, निस्स्फुलति । वह निश्चय से कांपता है। नि-निष्फुलति, निस्फुलति । वह निम्नत: कांपता है। वि-विष्फुलति, विस्फुलति । वह विशेषत: कांपता है।
सिद्धि-(१) निष्फुरति । यहां निर्-उपसर्गपूर्वक 'स्फुर स्फुरणे (तु०प०) धातु से लट्' प्रत्यय है। लकार के स्थान में तिप्' आदेश और तुदादिभ्यः श' (३।१।७७) से 'श' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से इणन्त निर्' उपसर्ग से परवर्ती स्फुरति' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। 'खरवसानयोर्विसर्जनीयः' (८।३।१५) से निर्' के रेफ को विसर्जनीय, विसर्जनीयस्य सः' (८।३।३४) से विसर्जनीय को सकारादेश और 'ष्टुना ष्टुः'
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